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RV 1.44.11

Updated: Jun 11, 2021


Rig Ved 1.44.11


Here Hota means one who accepts. So here Agnidev is Hota, चित्त (State of Mind), विप्र (Brahmin) and Parmatma. Although he is one Tatva, but takes different forms as per the function this Body or उपाधि(Tittle) performs. The Eyes - See, Ear - Hears, Mouth - Tastes, & Skin - Feels the touch. Every function is responsive to the Param Paavan Parmaarth. Parmatma is Purushaarth and Purushaarth is Parmatma. So Agnidev is Parmatma, Purushaarth and Param Purushaarth.


नि त्वा॑ य॒ज्ञस्य॒ साध॑न॒मग्ने॒ होता॑रमृ॒त्विजं॑ ।


म॒नु॒ष्वद्दे॑व धीमहि॒ प्रचे॑तसं जी॒रं दू॒तमम॑र्त्यं ॥


Translation:-


अग्ने - Agnidev!


यज्ञस्य - In Yagya.


साधनम् - One who performs.


होतारम् - The one inviting the Devi.


ऋत्विजम् - Priest.


प्रचेतसम् - Intelligent.


जीरम् - Life spent in Vain.


दूतम् - Messenger.


अमर्त्यम् - Immortal.


त्वा - You.


मनुष्वत् - Like Manu.


नि धीमहि - To establish.


Explanation:Oh Agnidev! We want to establish you as humans in many forms. We want to establish you as resource, hota,Priest, Intellectual and indestructible.


Deep meaning: Here Hota means one who accepts. So here Agnidev is Hota, चित्त (State of Mind), विप्र (Brahmin) and Parmatma. Although he is one Tatva, but takes different forms as per the function this Body or उपाधि(Tittle) performs. The Eyes - See, Ear - Hears, Mouth - Tastes, & Skin - Feels the touch. Every function is responsive to the Param Paavan Parmaarth. Parmatma is Purushaarth and Purushaarth is Parmatma. So Agnidev is Parmatma, Purushaarth and Param Purushaarth.


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#मराठी


ऋग्वेद १.४४.११


नि त्वा॑ य॒ज्ञस्य॒ साध॑न॒मग्ने॒ होता॑रमृ॒त्विजं॑ ।


म॒नु॒ष्वद्दे॑व धीमहि॒ प्रचे॑तसं जी॒रं दू॒तमम॑र्त्यं ॥


भाषांतर;


अग्ने - अग्निदेव!


यज्ञस्य - यज्ञात.


साधनम् - निष्पादक.


होतारम् - देवीचे आवाहक.


ऋत्विजम् - ऋत्विक.


प्रचेतसम् - ज्ञानी.


जीरम् - आयु नष्ट करणे.


दूतम् - दूत.


अमर्त्यम् - अमर.


त्वा - आपण.


मनुष्वत् - मनु सारखे.


नि धीमहि - स्थापित करणे.


भावार्थ:हे अग्निदेव! आम्ही आपल्याला मनुष्या सारखे अनेक रूपात स्थापित करू. आपल्याला साधन रूप, होता रूप, ऋत्विक रूप, ज्ञानी रूप, पुरातन रूप आणि अविनाशी रूपात स्थापित करू इच्छितो.


गूढार्थ;इथे होता म्हणजे ग्रहण करणारा. अग्निदेव इथे चित्त आहेत, विप्र आहेत, पुरोहित आहेत परमात्मा आहेत, पण ते अनेक नसून एकच तत्व आहेत, पण अनेक उपाधी असून त्या सगळ्यांचा कार्य क्षेत्र वेगळे आहेत. ते एक तत्व असून ते परमात्मा आहेत. उपाधीचे वैविध्य असून ते कार्य पण वेगळेच करतात. कान श्रवण करतो, तोंड रसनेचा स्वाद घेतो, शरीर स्पर्श अनुभवतो, डोळे बघण्याचा कार्य करतात. सगळ्यांचा परम पावन संदर्भ आहे परमार्थ. परमात्म्या साठी परमार्थ आहे आणि परमार्था साठी परमात्मा, अग्निदेवच परमात्मा आहेत, पुरुषार्थ आहेत आणि परम पुरुषार्थ आहेत.



#हिन्दी


ऋग्वेद १.४४.११


नि त्वा॑ य॒ज्ञस्य॒ साध॑न॒मग्ने॒ होता॑रमृ॒त्विजं॑ ।


म॒नु॒ष्वद्दे॑व धीमहि॒ प्रचे॑तसं जी॒रं दू॒तमम॑र्त्यं ॥


अनुवाद;


अग्ने - अग्निदेव!


यज्ञस्य - यज्ञ के।


साधनम् - निष्पादक।


होतारम् - देवी के आवाहनकर्ता।


ऋत्विजम् - ऋत्विज।


प्रचेतसम् - ज्ञानी।


जीरम् - आयु बर्बाद करना।


दूतम् - दूत।


अमर्त्यम् - अमर।


त्वा - आप।


मनुष्वत् - मनु की तरह।


नि धीमहि - स्थापित करना।


भावार्थ:हे अग्निदेव!,हम आपको मनुष्यों की भांति कई रूपों में स्थापित करना चाहते हैं। हम आपको साधन रूप, होता रूप, ऋत्विक रूप, ज्ञानी रूप, पुरातन और अविनाशी रूप में स्थापित देखना चाहते हैं।


गूढ़ार्थ;यहां होता रूप अर्थात ग्रहण करनेवाले।तो यहां अग्निदेव होता होने के साथ साथ चित्त हैं,विप्र हैं, पुरोहित हैं, परमात्मा हैं। चर्चा होने के बाद ये एक हैं,एक ही तत्व है पर अलग अलग उपाधि हैं क्योंकि इनके कार्य के अनुरूप ये अलग अलग हैँ जबकि ये एक ही तत्व है। वह परमात्मा ही है। उनका परम पावन संदर्भ है परमार्थ। उपाधि के भेद से देखा जाए तो आंख का काम है देखना, मुंह का काम है रसना का स्वाद लेना, कान का श्रवण करना, शरीर का स्पर्श करना।परमार्थ के लिये परमात्मा हैं औंर परमात्मा के लिए परमार्थ हैं।अग्निदेव ही परमात्मा हैं, पुरूषार्थ हैं औंर वही परम पूरूषार्थ हैं।



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