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Writer's pictureAnshul P

RV 1.44.3

Updated: May 24, 2021


Rig Ved 1.44.3


The yagya conducted during morning is supposed to be most divine. We pray and make offerings as the sunlight appears taking away darkness. We recite the twenty four worded gayatri thus cleansing our twenty four elements. It means that since the night is over it is now time for Purusharth and Parmaarth. Both together will be परमपुरूषार्थ(Total Divinity). This is the stuti done here.


अ॒द्या दू॒तं वृ॑णीमहे॒ वसु॑म॒ग्निं पु॑रुप्रि॒यं ।


धू॒मके॑तुं॒ भाऋ॑जीकं॒ व्यु॑ष्टिषु य॒ज्ञाना॑मध्वर॒श्रियं॑।।


Translation:


अद्य - Today.


दूतम् - Messenger.


वसुम् - For residing.


पुरुप्रियम् - Liked by many.


धूमकेतुम् - Comet like flag.


भाऋजीकम् - Decorated with well known jyoti.


व्युष्टिषु - Morning.


यज्ञानाम् - Of Yajmans.


अध्वरश्रियम् - One who assimilates yagya.


अग्निम् - Of Agni.


वृणीमहे - To accept.


Explanation: The yagya to be held during morning are decorated with comet like flags and jyoti, the most likeable and great Agnidev is our refuge and we too have become pure or pious.


Deep meaning: The yagya conducted during morning is supposed to be most divine. We pray and make offerings as the sunlight appears taking away darkness. We recite the twenty four worded gayatri thus cleansing our twenty four elements. It means that since the night is over it is now time for Purusharth and Parmaarth. Both together will be परमपुरूषार्थ(Total Divinity). This is the stuti done here.


https://www.instagram.com/tv/CPOSkWzjHDb/?utm_medium=copy_link




#मराठी


ऋग्वेद १.४४.३



अ॒द्या दू॒तं वृ॑णीमहे॒ वसु॑म॒ग्निं पु॑रुप्रि॒यं ।


धू॒मके॑तुं॒ भाऋ॑जीकं॒ व्यु॑ष्टिषु य॒ज्ञाना॑मध्वर॒श्रियं॑।।


भाषांतर:


अद्य - आज.


दूतम् - दूत.


वसुम् - निवास हेतु.


पुरुप्रियम् - बहुतेकांचे प्रिय.


धूमकेतुम् - धूम रूपी ध्वज.


भाऋजीकम् - प्रसिद्ध ज्योती ने अलंकृत.


व्युष्टिषु - सकाळ.


यज्ञानाम् - यजमानांचे.


अध्वरश्रियम् - यज्ञाचे सेवन करणारे.


अग्निम् - अग्नीचे.


वृणीमहे - वरण करणे.


भावार्थ:प्रातःकाळी जे यज्ञ होत आहेत ते ध्वज आणि ज्योतीने सुशोभित कंलेल्या धूमकेतु प्रमाणे दिसत आहे. असे सर्वप्रिय देवदूत सर्वांचे आश्रय आणि महान अग्निदेवांना आम्ही ग्रहण करून शुद्ध आणि पवित्र झालो.


गूढार्थ; प्रातः काळाचा यज्ञ सर्वात पवित्र आणि दिव्य असतो. प्रकाश आल्यावर आम्ही मंत्रा द्वारे यजन करतो. चोवीस अक्षर युक्त गायत्रीमंत्र म्हणून आम्ही चोविस तत्त्वांचे शोधन करतो, अर्थात हे की रात्र समाप्त झाली. आता पुरुषार्थ आणि परमार्थला बरोबर घेऊन परपुरुषार्थ करू अशी स्तुती केली आहे.



#हिन्दी


ऋग्वेद १.४४.३



अ॒द्या दू॒तं वृ॑णीमहे॒ वसु॑म॒ग्निं पु॑रुप्रि॒यं ।


धू॒मके॑तुं॒ भाऋ॑जीकं॒ व्यु॑ष्टिषु य॒ज्ञाना॑मध्वर॒श्रियं॑।।


अनुवाद:


अद्य - आज।

दूतम् - दूत।


वसुम् - रहने के लिए।


पुरुप्रियम् - कईयों के प्रिय।


धूमकेतुम् - धूम के समान ध्वजा।


भाऋजीकम् - प्रसिद्ध ज्योति से स जा।


व्युष्टिषु - सुबह।


यज्ञानाम् - यजमानों के।


अध्वरश्रियम् - यज्ञ का सेवन करनेवाले।


अग्निम् - अग्नि का।


वृणीमहे - वरण करना।


भावार्थ: प्रातःकाल मे होने वाले यज्ञ जो धूम की ध्वजा और ज्योति से शोभायमान हैं. ऐसे सबके प्रिय देवदूत और सबके आश्रय महान अग्निदेव को हम ग्रहण करके श्री संपन्न बनते हैं.


गूढ़ार्थ:प्रातःकाल का यज्ञ सबसे दिव्य माना जाता है। प्रकाश के आने पर हम मंत्रों द्वारा यजन करते हैं चौबीस अक्षरों वाली गायत्रीमंत्र से चौबीस तत्वों का शोधन करते हैं।तात्पर्य यह कि निशा समाप्त हुई। अब पुरुषार्थ और परमार्थ द्वारा परमपुरूषार्थ करने का समय है।यहां पर यही स्तुति की गई है।




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