Rig Ved 1.44.4
Here one thing is said for all collectively that all of us aspire divinity. Our each step is in that direction. If one person achieves this then he tries to purify the whole shrishti through his purity. Person with pure chitta will always think about all and if he finds any shortcomings he will try to rectify it.
श्रेष्ठं॒ यवि॑ष्ठ॒मति॑थिं॒ स्वा॑हुतं॒ जुष्टं॒ जना॑य दा॒शुषे॑ ।
दे॒वाँ अच्छा॒ यात॑वे जा॒तवे॑दसम॒ग्निमी॑ळे॒ व्यु॑ष्टिषु ॥
Translation:
व्युष्टिषु - In morning.
देवान् - For devtas.
अच्छ - In front.
यातवे - To go.
श्रेष्ठतम् - Best.
यविष्ठम् - Youthful.
अतिथिम् - Can walk endlessly.
स्वाहुतम् - Offerings made by everyone.
दाशुषे - One offering Havi.
जनाय - Towards Yajman.
जुष्टम् - Happy.
जातवेदसम् - One who knows everything.
अग्निम् - Agni.
ईळे - To sing praises.
Explanation: We sing praises to the best, who is in our guest form, praise worthy, havi daata, one who is worshipped by yajmans,worth calling and one who knows everything, that is Agnidev. We request him to take us towards divinity.
Deep meaning: Here one thing is said for all collectively that all of us aspire divinity. Our each step is in that direction. If one person achieves this then he tries to purify the whole shrishti through his purity. Person with pure chitta will always think about all and if he finds any shortcomings he will try to rectify it.
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📸 Credit - Satay_Shiva(Instagram handle)
#मराठी
ऋग्वेद१.४४.४
श्रेष्ठं॒ यवि॑ष्ठ॒मति॑थिं॒ स्वा॑हुतं॒ जुष्टं॒ जना॑य दा॒शुषे॑ ।
दे॒वाँ अच्छा॒ यात॑वे जा॒तवे॑दसम॒ग्निमी॑ळे॒ व्यु॑ष्टिषु ॥
अनुवाद:
व्युष्टिषु - उषाकाळ.
देवान् - देवाचे.
अच्छ - समोर.
यातवे - जाण्यासाठी.
श्रेष्ठतम् - प्रशस्त.
यविष्ठम् - युवा
अतिथिम् - सतत चालणारी.
स्वाहुतम् - सर्वात आहूत.
दाशुषे - हवि दाता.
जनाय - यजमानांच्या प्रति.
जुष्टम् - प्रसन्न.
त्र
जातवेदसम् - सर्वज्ञ.
अग्निम् - अग्नी.
ईळे - स्तुती करणे.
भावार्थ: आम्ही सर्वश्रेष्ठ, युवा, आहवनीय,अतिथि रूप, वंदनीय , हविदाता, यजमान द्वारे पूजित, सर्वज्ञ अग्नि देवांची आम्ही स्तुती करतो. तसेच आम्हाला देवत्त्वा कड़े नेण्याची विनंती करतो.
गूढार्थ:इथे एकच गोष्ट सर्व लोकांसाठी सामूहिक रूपात सांगितलेली आहे की आमचे सर्वांचे लक्ष्य एकच आहे, आमचेँ प्रत्येक पाऊल त्याच दिशेला चालत आहे आणि ते देव प्राप्त करण्यासाठी, जर एक व्यक्तीचे कल्याण होईल नंतर तो आपल्या शुद्धतेने सर्व सृष्टी शुद्ध व पवित्र करण्याचा प्रयत्न करेल.
#हिंदी
ऋग्वेद१.४४.४
श्रेष्ठं॒ यवि॑ष्ठ॒मति॑थिं॒ स्वा॑हुतं॒ जुष्टं॒ जना॑य दा॒शुषे॑ ।
दे॒वाँ अच्छा॒ यात॑वे जा॒तवे॑दसम॒ग्निमी॑ळे॒ व्यु॑ष्टिषु ॥
अनुवाद:
व्युष्टिषु - उषाकाल मे।
देवान् - देवों के।
अच्छ - सामने।
यातवे - जाने हेतु।
श्रेष्ठतम् - सबसे अच्छा।
यविष्ठम् - युवा।
अतिथिम् - लगातार चलने में समर्थ।
स्वाहुतम् - सब के द्वारा आहूत।
दाशुषे - हविदाता।
जनाय - यजमान के प्रति।
जुष्टम् - प्रसन्न।
जातवेदसम् - सबको जाननेवाले।
अग्निम् - अग्नि।
ईळे - स्तुति करना।
भावार्थ:हम सबसे श्रेष्ठ, सबसे युवा, अतिथि समान, वंदना योग्य, हविदाता, यजमान के पूजनीय, आहवनीय, सबकुछ जानने वाले अग्निदेव की हम रोज स्तुति करते हैं।हमे वे देवत्व की ओर ले चलें।
गूढ़ार्थ;यहां एक ही बात सबके लिए सामूहिक रूप से कही गई है कि हम सबका लक्ष्य देव को प्राप्त करना। यही हमारा चरम लक्ष्य है। हमारा प्रत्येक बढ़ता हुआ कदम उसी दिशा में है।एक व्यक्ति का कल्याण मतलब केवल उसका कल्याण होगा, फिर वह अपनी शुद्धता से समस्त प्रकृति का संशोधन करके सबका कल्याण करने की चेष्ठा करेगा। जो भी शुभ चित्तवाले व्यक्ति होते हैं वे समग्रता की बात सोचते हैं और जो भी कमियां हैं उनमें पूर्णता लाने की बात ही सोचते हैं।
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