Rig Ved 1.44.8
Here it means that night is over now is the time to make arrangements. Those who possess the resources, they must have prepared the four chatushtya(साधन चतुष्ट्य), means that they possess a tradition, intelligence, detachment and मुमुक्षा(wish for Moksha). When there is मुमुक्षा then that person is fully prepared. Then he is entitled to get his sadhna complete. It's morning so the rishis or the thinkers are also present, then it's time to achieve Param gyan from Param prakash.
स॒वि॒तार॑मु॒षस॑म॒श्विना॒ भग॑म॒ग्निं व्यु॑ष्टिषु॒ क्षपः॑ ।
कण्वा॑सस्त्वा सु॒तसो॑मास इंधते हव्य॒वाहं॑ स्वध्वर ॥
Translation:-
स्वध्वर - Oh the decorated Agnidev!
क्षपः - After the night.
व्युष्टिषु - From morning.
सवितारम् - Sun or Savits.
उषसम् - Morning or Usha.
अश्विना - Both Ashwini Kumar's.
भगम् - Bhag.
अग्निम् - For Agni.
सुतसोमासः - One preparing Somrasa.
कण्वासः - Intelligent priests.
हव्यवाहम् - The carrier of havi.
त्वा - You.
इन्धते - To light.
Explanation; The best conductor of Yagya, Oh Agnidev! After the night passes you bring along Sun(Savita), Usha, both Ashwini Kumar, Bhag and other Devtas for this Yagya. The priests preparing Somras and carrier of havi, will illuminate you.
Deep meaning: Here it means that night is over now is the time to make arrangements. Those who possess the resources, they must have prepared the four chatushtya(साधन चतुष्ट्य), means that they possess a tradition, intelligence, detachment and मुमुक्षा(wish for Moksha). When there is मुमुक्षा then that person is fully prepared. Then he is entitled to get his sadhna complete. It's morning so the rishis or the thinkers are also present, then it's time to achieve Param gyan from Param prakash.
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#मराठी
ऋग्वेद १.४४.८
स॒वि॒तार॑मु॒षस॑म॒श्विना॒ भग॑म॒ग्निं व्यु॑ष्टिषु॒ क्षपः॑ ।
कण्वा॑सस्त्वा सु॒तसो॑मास इंधते हव्य॒वाहं॑ स्वध्वर ॥
भाषांतर;
स्वध्वर - यज्ञात शोभायमान अग्निदेव!
क्षपः - रात्रीचे नंतर.
व्युष्टिषु - ऊषाकाळ
सवितारम् - सविता.
उषसम् - ऊषा.
अश्विना - दोघे अश्विनी कुमार.
भगम् - मग.
अग्निम् - अग्निला.
सुतसोमासः - सोमरस बनवणारे.
कण्वासः - ज्ञानी ऋत्विक.
हव्यवाहम् - हवि वाहक.
त्वा - आपण.
इन्धते - प्रज्जवलित करणे.
भावार्थ;श्रेष्ठ यज्ञ संपन्न करणारे अग्निदेव! रात्र गेल्यानंतर आपण सविता, उषा दोघे अश्विनी कुमार, भग इत्यादी देवांना येथे आणावे. सोमरस बनविणारे याजक, हवी वाहक आपणास प्रज्वलित करत आहेत.
गूढार्थ; ह्याचा अर्थ असा की रात्रीचा समय समाप्त झाला आहे आणि आता सर्व तयारी करण्याची वेळ झाली आहे, जे साधन संपन्न असतील त्याने साधन चतुष्ट्य ची तयारी केली असणार, ह्याचा अर्थ असे की ही तयारी परंपरा, विवेक,वैराग्य आणि मुमुक्षा ही असणार, जेंव्हा मुमुक्षा अवस्था येते तेंव्हा तो मनुष्य पूर्ण रूपानें तयार असतो, तो ह्या साध्याला प्राप्त करण्याचा अधिकारी आहे,आता रात्र संपली आणि ऋषी गण पण आले आहेत, विचारक पण आले आहेत तर परम प्रकाशाकडून परम ज्ञान प्राप्त करण्याची हीच वेळ आहे
#हिन्दी
ऋग्वेद १.४४.८
स॒वि॒तार॑मु॒षस॑म॒श्विना॒ भग॑म॒ग्निं व्यु॑ष्टिषु॒ क्षपः॑ ।
कण्वा॑सस्त्वा सु॒तसो॑मास इंधते हव्य॒वाहं॑ स्वध्वर ॥
अनुवाद;
स्वध्वर - यज्ञ में शोभायमान अग्निदेव!
क्षपः - रात्रि के उपरांत।
व्युष्टिषु - सवेरे।
सवितारम् - सविता।
उषसम् - उषा।
अश्विना - दोनों अश्विनी कुमार।
भगम् - भग।
अग्निम् - अग्नि को।
सुतसोमासः - सोमरस बनानेवाले।
कण्वासः - ज्ञानी ऋत्विक।
हव्यवाहम् - हवि वाहक।
त्वा - आप।
इन्धते - प्रजवलित करना।
भावार्थ;हे श्रेष्ठ यज्ञ निष्पादक अग्निदेव!रात्रि बीत जाने पर प्रातः काल में आप सविता,उषा, दोनो अश्विनी कुमार , भग इत्यादि देवों को यहां लेकर आएं। सोमरस तैयार करनेवाले और हवि को पहुंचाने वाले ऋत्विक आपको प्रज्ज्वलित करते हैं।
गूढार्थ;इसका अर्थ यह है कि रात्रि बीत चुकी है,अब तैयारी का समय है। जो साधन संपन्न हैं उन्होंने साधन चतुष्ट्य से अपनी तैयारी कर ली होगी। इसका अर्थ है की इस तैयारी में परंपरा होगी, विवेक होगा, वैराग्य होगा और मुमुक्षा होगी।मुमुक्षा आ गई है तो वह व्यक्ति पूर्ण तैयारी कर चुका है। वह इस साध्य को प्राप्य करने का अधिकारी है। अब रात्रि बीत जाने पर ऋषि गण भी आ चुके हैं जो विचारक हैं अब परम प्रकाश से ज्ञान प्राप्त करने का समय आ गया है।
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