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RV 1.44.8

Updated: Jun 5, 2021


Rig Ved 1.44.9


When the person becomes enabled through साधन चतुष्ट्य (To understand साधन चतुष्ट्य read the previous mantra 👉 https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=160738949400003&substory_index=0&id=100063916951422 ), He now is entitled to request his subject for his own betterment so that he attains his श्रेय(Shrey is when Aatma is feeling pleasant) and प्रेय (Preya is when you feel pleasant while fulfilling your materialistic desire). But their intentions are same therefore there is no choice. Also all the Devi's Devta's and all the resources together will help you achieve this through previous planning.


पति॒र्ह्य॑ध्व॒राणा॒मग्ने॑ दू॒तो वि॒शामसि॑ ।


उ॒ष॒र्बुध॒ आ व॑ह॒ सोम॑पीतये दे॒वाँ अ॒द्य स्व॒र्दृशः॑ ॥


Translation;


अग्ने - Agnidev!


विशाम् - Of subjects.


अध्वरानाम् - Of Yagya.


पतिः - Guardian.


दूतः - Messenger.


हि - Surely.


असि - Is.


उषर्बुधः - Rising in the morning.


स्वर्दृश - To look at Sun.


देवान् - Of devtas.


अद्य - Today.


सोमपीतये - To drink Somras.


आ वह - To bring.


Explanation ;Oh Agnidev! You are the master and messenger of the devtas in this Yagya organised by Yajmans. You are requested to bring along the devtas awakened in this morning.


Deep meaning:- When the person becomes enabled through साधन चतुष्ट्य (To understand साधन चतुष्ट्य read the previous mantra 👉 https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=160738949400003&substory_index=0&id=100063916951422 ), He now is entitled to request his subject for his own betterment so that he attains his श्रेय(Shrey is when Aatma is feeling pleasant) and प्रेय (Preya is when you feel pleasant while fulfilling your materialistic desire). But their intentions are same therefore there is no choice. Also all the Devi's Devta's and all the resources together will help you achieve this through previous planning.


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https://www.instagram.com/p/CPtXaauLclk/?utm_medium=copy_link




📸 Credit - Bhagavadgitachanting (Instagram handle)


#मराठी


ऋग्वेद १.४४.९


पति॒र्ह्य॑ध्व॒राणा॒मग्ने॑ दू॒तो वि॒शामसि॑ ।


उ॒ष॒र्बुध॒ आ व॑ह॒ सोम॑पीतये दे॒वाँ अ॒द्य स्व॒र्दृशः॑ ॥


भाषांतर;


अग्ने - अग्निदेव!


विशाम् - प्रजेचे.


अध्वरानाम् - यज्ञाचे.


पतिः - पालक.


दूतः - दूत.


हि - निश्चित.


असि - आहे.


उषर्बुधः - सकाळी उठून.


स्वर्दृश - सूर्य दर्शन.


देवान् - देवांना.


अद्य - आज.


सोमपीतये - सोमप्राशन.


आ वह - घेऊन येणे.


भावार्थ; हे अग्निदेव! आपण साधकां द्वारे केलेले यज्ञाचे अधिपती आणि देवतांचे दूत आहात. आपण उषःकालात जागृत देवांना सोमप्राशन निमित्त यज्ञात आणावे.


गूढार्थ; जेंव्हा व्यक्ती साधन चतुष्ट्यच्या श्रेणीत येतो तेंव्हा तो अधिकारी बनतो आपला विषय जाणून स्वतःचे कल्याणासाठी प्रार्थना करतो. तो आपले श्रेय किंवा प्रेय प्राप्त करू शकतो, दोघ्या मध्ये एक साम्य आहे म्हणजे प्रयोजन किंवा हेतू. संपूर्ण देवी देवता मिळूनच आणि समस्त साधन मिळून एका योजनेनुसार कार्य करून ह्या प्रयोजनाची पूर्तता करतात.



#हिन्दी


ऋग्वेद १.४४.९


पति॒र्ह्य॑ध्व॒राणा॒मग्ने॑ दू॒तो वि॒शामसि॑ ।


उ॒ष॒र्बुध॒ आ व॑ह॒ सोम॑पीतये दे॒वाँ अ॒द्य स्व॒र्दृशः॑ ॥


अनुवाद;


अग्ने - अग्निदेव!


विशाम् - प्रजा के।


अध्वरानाम् - यज्ञ के।


पतिः - पालनकर्ता।


दूतः - दूत।


हि - निश्चित।


असि - हो।


उषर्बुधः - सवेरे उठकर।


स्वर्दृश - सूर्य दर्शन करना।


देवान् - देवों का।


अद्य - आज।


सोमपीतये - सोमपान।


आ वह - लाना।


भावार्थ;हे अग्निदेव!आप याजकों द्वारा किये जा रहे यज्ञ के स्वामी और देवो के दूत हो। आप से निवेदन है कि उषाकाल में जागृत देवो को सोमपान के निमित्त यज्ञ में लाएं।


गूढ़ार्थ;जब व्यक्ति साधन चतुष्ट्य की श्रेणी में आ जाता है तो वह इसका अधिकारी बन गया कि वह अपना विषय जानकर अपने कल्याण के लिए प्रार्थना करे, अपने श्रेय और प्रेय की प्राप्ति करे। इन दोनों में एक बात समान है वह है अभीष्ट। सारे देवी देवता हमारा मिलककर कल्याण करेंगे, सारे साधन मिलकर एक पहले की योजना के अनुसार काम करेंगे तब जाकर अभिष्ट की पूर्ति होगी।




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