Rig Ved 1.45.2
When there is lack of (दैविक शक्ति ) Divine power in Jeev then life becomes unhappy. May this Divine power increase, May develop more, so we request the thirty three koti Devtas, may they come and increase the divinity in our (विज्ञानात्म)Vigyanatma which is nothing else but our Mind and Jeev through which we have the ability to think. It can think only if it has Divine power. Constant mind and integrated Chitta only has the power to think.
श्रु॒ष्टी॒वानो॒ हि दा॒शुषे॑ दे॒वा अ॑ग्ने॒ विचे॑तसः ।
तान्रो॑हिदश्व गिर्वण॒स्त्रय॑स्त्रिंशत॒मा व॑ह ॥
Translation;
अग्ने - Agnidev!
विचेतसः - Intelligent.
देवाः - Devtas.
दाशुषे - Giver of offerings.
हि - Sure.
श्रृष्टीवानः - The one giving results.
रोहिदश्व - A horse named Rohit.
गिवर्ण - Prayer through hymns.
तान् - They.
त्रयस्त्रिंशतम - Thirty three Devtas.
आ वह - To bring.
Explanation; Oh Agnidev! The Devtas with special intelligent qualities provide happiness to the one who gives offerings. Oh the one adorned by Rohit or blood coloured horses! You are requested to bring the thirty three koti Devtas for this Yagya.
Deep meaning: When there is lack of (दैविक शक्ति ) Divine power in Jeev then life becomes unhappy. May this Divine power increase, May develop more, so we request the thirty three koti Devtas, may they come and increase the divinity in our (विज्ञानात्म)Vigyanatma which is nothing else but our Mind and Jeev through which we have the ability to think. It can think only if it has Divine power. Constant mind and integrated Chitta only has the power to think.
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📸 Credit - Vishal Kadian
#मराठी
ऋग्वेद१.४५.२
श्रु॒ष्टी॒वानो॒ हि दा॒शुषे॑ दे॒वा अ॑ग्ने॒ विचे॑तसः ।
तान्रो॑हिदश्व गिर्वण॒स्त्रय॑स्त्रिंशत॒मा व॑ह ॥
भाषांतर;
अग्ने - अग्निदेव!
विचेतसः - ज्ञान संपन्न.
देवाः - देवता.
दाशुषे - हविदाता.
हि - निश्चित.
श्रृष्टीवानः - फळ देणारे.
रोहिदश्व - रोहित नावाचा अश्व.
गिवर्ण - स्तुती ने यजन.
तान् - त्या.
त्रयस्त्रिंशतम - तेहतीस देवता.
आ वह - घेऊन येणे.
भावार्थ; हे अग्निदेव! विशेष ज्ञानाने परिपूर्ण देवता हावीदातास सुखी करतात, हे रोहित किँवा रक्तवर्णी अश्वात शोभीत असलेले अग्निदेव!त्या तेहतीस कोटी देवतांना यज्ञात आणावे.
गूढार्थ; जेव्हा जीवा मध्ये दैविक शक्तीचा अभाव होतो तेंव्हा जीवनात दुःख होते, ह्या दैविक शक्तीची वृद्धी करण्या साठी, त्याचे विकासासाठी म्हणून तेहतीस कोटि देवता इतर आहेत. त्या सगळ्या येऊन आमच्या विज्ञानात्मा मध्ये देवत्वाची वृद्धि करावी,हे मन आणि जीव हेच विज्ञानात्मा आहे. त्यात जेव्हा दैविक शक्ति असते तेव्हा तो विचार करू शकतो कारण स्थिर मन आणि समाहित चित्त मध्येच विचार होतो.
#हिन्दी
ऋग्वेद१.४५.२
श्रु॒ष्टी॒वानो॒ हि दा॒शुषे॑ दे॒वा अ॑ग्ने॒ विचे॑तसः ।
तान्रो॑हिदश्व गिर्वण॒स्त्रय॑स्त्रिंशत॒मा व॑ह ॥
अनुवाद;
अग्ने - अग्निदेव!
विचेतसः - ज्ञान से परिपूर्ण।
देवाः - देवता।
दाशुषे - हवि देनेवाले।
हि - निश्चित।
श्रृष्टीवानः - फलदायी।
रोहिदश्व - रोहित नाम का अश्व।
गिवर्ण - स्तुति गाकर यजन।
तान् - उन।
त्रयस्त्रिंशतम - तैंतीस देवता।
आ वह - लाना।
भावार्थ; हे अग्निदेव! विशेष ज्ञान से परिपूर्ण देवता हवि देनेवाले को सुख देते हैं। हे रोहित या रक्त के रंगों से शोभायमान अग्निदेव! आप से निवेदन है कि आप उन तैतीस कोटि देवताओं को यहां लेकर आएँ।
गूढ़ार्थ;जब जीव में दैविक शक्ति का अभाव होता है तब जीवन में दुख होता है।ये दैविक शक्ति हमारे जीवन में बढ़े, उसका विकास हो, इसीलिए यहां तेंतीस कोटि देवता आएं और हमारे विज्ञानात्मा में देवत्व में वृद्धि करें। ये मन और जीव ही विज्ञानात्मा है जिसके द्वारा हम विचार करते हैं वही विज्ञानात्मा है।उसमें जब दैविक शक्ति होती है तभी उसमे विचार होता । स्थिर मन और समाहित चित्त में ही विचार होता है।
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