Rig Ved 1.45.4
Wherever Agnidev goes, (प्रकाश) Illumination follows him. But here this glow is not an ordinary one but the one that is Divine or the Illumination of Knowledge. The Knowledge of Illumination makes a Jeev aware of his consciousness. When this is achieved all the ignorance goes away and our aim is achieved.
महि॑केरव ऊ॒तये॑ प्रि॒यमे॑धा अहूषत ।
राजं॑तमध्व॒राणा॑म॒ग्निं शु॒क्रेण॑ शो॒चिषा॑ ॥
Translation ः
महिकेरवः - The one's doing mature work.
प्रियमेधा - Sage Priyamedha.
ऊतये - To protect.
अध्वराणाम् - In the middle of Yagya.
शुक्रेण - Pure.
शोचिषा - With glow.
राजन्तम - Shining.
अग्निम् - Of Agni.
अहूषत - To call.
Explanation;Agnidev is illuminated in his full radiance. Rishis Priyamedha, the one with the best Karma's called upon Agnidev for their protection.
Deep meaning; Wherever Agnidev goes, (प्रकाश) Illumination follows him. But here this glow is not an ordinary one but the one that is Divine or the Illumination of Knowledge. The Knowledge of Illumination makes a Jeev aware of his consciousness. When this is achieved all the ignorance goes away and our aim is achieved.
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#मराठी
ऋग्वेद १.४५.४
महि॑केरव ऊ॒तये॑ प्रि॒यमे॑धा अहूषत ।
राजं॑तमध्व॒राणा॑म॒ग्निं शु॒क्रेण॑ शो॒चिषा॑ ॥
भाषांतर
महिकेरवः - प्रौढ कर्म करणारे.
प्रियमेधा - ऋषी प्रियामेधा.
ऊतये - रक्षण करणे.
अध्वराणाम् - यज्ञात.
शुक्रेण - शुद्ध.
शोचिषा - प्रकाशित.
राजन्तम - देदीप्यमान।
अग्निम् - अग्नीचे.
अहूषत - आह्वान करणे.
भावार्थ;दिव्य प्रकाशाने युक्त अग्निदेव आपल्या तेजस्वी रूपाने प्रदीप्त झाले.
श्रेष्ठ कर्माच्या ऋषी प्रियमेधा ने आपल्या रक्षणासाठी अग्निदेवांना आवाहन केले.
गूढार्थ; जिथे अग्निदेव आहेत तिथे प्रकाश तर असतोतच, परंतु इथला प्रकाश दिव्य आहे म्हणजे तो ज्ञानाचा प्रकाश आहे, ज्ञान किंवा चैतन्याच्या प्रकाशाने जीव हे चैतन्य होऊन जातो, म्हणून ज्ञानाची प्राप्ती होते, चेतन ज्ञान प्राप्त झाल्यावर अज्ञान बाधित होते, आणि आम्हास आपल्या उद्दिष्टाची प्राप्ती होते,
# हिन्दी
ऋग्वेद १.४५.४
महि॑केरव ऊ॒तये॑ प्रि॒यमे॑धा अहूषत ।
राजं॑तमध्व॒राणा॑म॒ग्निं शु॒क्रेण॑ शो॒चिषा॑ ॥
अनुवाद ः
महिकेरवः - प्रौढ़ कर्म करनेवाले।
प्रियमेधा - ऋषि प्रियमेधा।
ऊतये - रक्षा करना।
अध्वराणाम् - यज्ञ के बीच।
शुक्रेण - शुद्ध।
शोचिषा - प्रकाश से।
राजन्तम - प्रकाशमय।
अग्निम् - अग्नि का।
अहूषत - आह्वान करना।
भावार्थ;दिव्य प्रकाश से अपने संपूर्ण तेज के साथ अग्निदेव प्रज्जवलित हुए।श्रेष्ठ कर्म वाले प्रियमेधा ऋषियों ने अग्निदेव का आवाहन किया है।
गूढ़ार्थ;अग्निदेव के साथ तो प्रकाश रहता ही है, पर यहां वो दिव्य या ज्ञान का प्रकाश है।ज्ञान या चेतन के प्रकाश से जीव ही चैतन्य हो जाता है। इससे ज्ञान की प्राप्ति होती है। चेतन ज्ञान प्राप्त होने पर अज्ञान बाधित हो जाता है और हम अपने उद्देश्य को प्राप्त करें यही प्रार्थना की गई है।
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