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  • Writer's pictureAnshul P

RV 1.45.6


Rig Ved 1.45.6


Whatever incidents happen in our ignorance have no reason for us to be surprised. But the incidents that happen indirectly and which take away our sorrows and sufferings are definitely a surprise. This is the reason for this ritual where Shruti Bhagwati through her divine wealth showers her favours on us.


त्वां चि॑त्रश्रवस्तम॒ हवं॑ते वि॒क्षु जं॒तवः॑ ।


शो॒चिष्के॑शं पुरुप्रि॒याग्ने॑ ह॒व्याय॒ वोळ्ह॑वे।


Translation;


चित्रश्रवस्तम् - Oh the one with strange food offerings.


पुरुप्रिय - Yajmans liked by many.


अग्ने - Agnidev!


शीचिष्केशंम - Glowing face and hair.


विप्राः - Intelligent Priest.


प्रयः - Food for offerings.


अभि - Near food.


बृहत् - Great.


भाः - Radiant.


त्वा - Yours.


आ अचुच्यवुः - To call.


Explanation; Oh Agnidev! Your form is very radiant. You have astounding grandeur. While performing the Yagya, all the Priests and all the men make offerings to you through Havi.


Deep meaning:- Whatever incidents happen in our ignorance have no reason for us to be surprised. But the incidents that happen indirectly and which take away our sorrows and sufferings are definitely a surprise. This is the reason for this ritual where Shruti Bhagwati through her divine wealth showers her favours on us.





📸 Credit - Debdip Banerjee Sir


#मराठी


ऋग्वेद१.४५.६


त्वां चि॑त्रश्रवस्तम॒ हवं॑ते वि॒क्षु जं॒तवः॑ ।


शो॒चिष्के॑शं पुरुप्रि॒याग्ने॑ ह॒व्याय॒ वोळ्ह॑वे।।


भाषांतर;


चित्रश्रवस्तम् - हे विचित्र रूपात अन्न ह्याचे हवी युक्त।


पुरुप्रिय - बहुतेक याजमानांचे प्रिय,


अग्ने - अग्निदेव!


शीचिष्केशंम - दीप्ती युक्त रूप आणि केश,


विप्राः - मेधावी ऋत्त्विक


प्रयः - हविचे रूपात अन्न,


अभि - अन्न ह्याचे समोर,


बृहत् - महान,


भाः - तेजस्वी,


त्वा - आपण,


आ अचुच्यवुः - बोलवणे,


भावार्थ;हे अग्निदेव! आपण तेजस्वी आहात. आपण प्रेमपूर्वक हवी ग्रहण करता.आपल्याकडे आश्चर्यकारक वैभव आहे, संपूर्ण मनुष्य आणि ऋत्त्विक यज्ञ करताना आपल्याला आवाहन करतात.


गूढार्थ;अज्ञानात ज्या घटना घडल्या जातात, त्यावर काहीही आश्चर्य वाटण्याचे काही कारण नाही पण जी परोक्ष रूपाने धडतात म्हणजे जसे अज्ञान हटल्यावर आमची सगळी पीडा आणि दुःख समाप्त होऊन जातात तर तो आश्चर्यकारक असतो, म्हणून हे अनुष्ठानाच्या द्वारे भगवती श्रुती आपल्या दिव्य रत्नांच्या द्वारे आम्हास अनुग्रहित करतात।



#हिन्दी


ऋग्वेद१.४५.६


त्वां चि॑त्रश्रवस्तम॒ हवं॑ते वि॒क्षु जं॒तवः॑ ।


शो॒चिष्के॑शं पुरुप्रि॒याग्ने॑ ह॒व्याय॒ वोळ्ह॑वे।।


अनुवाद;


चित्रश्रवस्तम् - हे विभिन्न हवियों तथा अन्नं से युक्त।


पुरुप्रिय - यजमानों को प्रिय म्


अग्ने - अग्निदेव!


शीचिष्केशंम - चमकते रूप और केशों से युक्त।


विप्राः - ज्ञानी ऋत्विज।


प्रयः - अनाज के रूप में हवि।


अभि - अनाज के समीप।


बृहत् - महान।


भाः - तेज युक्त।


त्वा - आपका।


आ अचुच्यवुः - बुलाना।


भावार्थ;हे अग्निदेव आप तेजस्वी हैं। आप प्रेमपूर्वक हवि को ग्रहण करते हैं।आपके पास आश्चर्य में डालने वाला वैभव है।सभी मनुष्य और ऋत्विक यज्ञ करते समय आपको हवि समर्पित करते हैं।


गूढ़ार्थ;अज्ञान में जो घटनाएं घटती हैं वो आश्चर्यजनक नहीं हैं पर जो परोक्ष घटनाएं घटती हैं जैसे अज्ञान हटने पर हम जब सभी पीड़ा, दुख आदि समाप्त हो जाएं तो यह आश्चर्यसजनक है।इसीलिए यह अनुष्ठान के द्वारा श्रुति भगवती अपने दिव्य रत्नों के द्वारा हमे अनुग्रहित कर रही हैं।

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