Rig Ved 1.46.12
The materials required to make the offerings has been made. All the Acharyas are singing praises and calling upon the Devtas. In order to describe this achievement so that it can be explained properly through various aspects symbolically with its different connotations.
तत्त॒दिद॒श्विनो॒रवो॑ जरि॒ता प्रति॑ भूषति ।
मदे॒ सोम॑स्य॒ पिप्र॑तोः ॥
Translation
जरिता - One's singing.
मदे - For happiness.
सोमस्य - Of Som
पिप्रतोः - To Drink.
अश्विनोः - Of Ashwins.
तत् तत् - Repeat many times.
इत् - All.
अवः - To protect.
प्रति भूषति - To praise again and again.
Explanation: The stotra singers are describing way the Yagya were protected by Ashwini Kumar's in happy state.
Deep meaning: The materials required to make the offerings has been made. All the Acharyas are singing praises and calling upon the Devtas. In order to describe this achievement so that it can be explained properly through various aspects symbolically with its different connotations.
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#मराठी
ऋग्वेद१.४६.१२
तत्त॒दिद॒श्विनो॒रवो॑ जरि॒ता प्रति॑ भूषति ।
मदे॒ सोम॑स्य॒ पिप्र॑तोः ॥
भाषांतर
जरिता - स्टोता गण
मदे - प्रसन्नतेचा
सोमस्य - सोमाचे
पिप्रतोः - प्राशन करणारे
अश्विनोः - अश्विनांची
तत् तत् - पुनः पुनः
इत् - सर्व
अवः - रक्षण करणे
प्रति भूषति - बराबर प्रशंसा करत राहणे
भावार्थ: अश्विनीकुमार ह्यांचे श्रेष्ठ संरक्षणात सोमयज्ञ आनंदाने पार होण्याच्या उपलक्ष्यात स्तोतागण चांगल्या प्रकाराने त्याचे वर्णन करत आहेत,
गूढार्थ आहुतीसाठी हव्य तयार आहे।सर्व आचार्य स्तुती करत आणि आवाहन करत आहे, ते दिव्य गुणांचे वर्णन करत आहेत, ह्या महिमेचे वर्णन करून त्याच्या व्यंजनार्थ लक्ष्यार्थ आणि पदार्थ सर्व परिभाषित होत असतात.
#हिंदी
ऋग्वेद१.४६.१२
तत्त॒दिद॒श्विनो॒रवो॑ जरि॒ता प्रति॑ भूषति ।
मदे॒ सोम॑स्य॒ पिप्र॑तोः ॥
अनुवाद
जरिता - स्तोता गण।
मदे - खुशी के लिए।
सोमस्य - सोम के।
पिप्रतोः - पान करनेवाले।
अश्विनोः - अश्विनो की।
तत् तत् - पुनः पुनः।
इत् - सर्व।
अवः - रक्षण करना।
प्रति भूषति - कई बार तारीफ करना।
भावार्थ: सोमयज्ञ के आनन्द पूर्वक पूर्ण होने वाले,तथा अश्विनी कुमारों के श्रेष्ठ संरक्षण का स्तोता गण अच्छे प्रकार से वर्णन करते हैं।
गूढार्थ:आहुति के लिए हव्य तैयार है।सारे आचार्य स्तुति करते हैं और आवाहन करते हैं।वे दिव्य गुणों का वर्णन करते हैं।इस महिमा का वर्णन करने से इसका व्यंजनार्थ, लक्ष्यार्थ, पदार्थ सभी कुछ परिभाषित हो जायेगा।
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