Rig Ver 1.46.13
Acharya is calling out to Parmatma by singing his praises. Ashwini Kumars are the Devtas of good health. So our mind, intelligence, body, chitta, indriyas, desh, kaal and vastu may be suffering through whatever disease, they will be healed. When all our diseases are healed we will attain happiness. We are performing Yagya for this purpose. We surrender our dravya or substance or entities which will make us happy since we are submitting the deepest thing that is our heart to Parmatma. We are doing this out of deep regard to Parmatma.
वा॒व॒सा॒ना वि॒वस्व॑ति॒ सोम॑स्य पी॒त्या गि॒रा ।
म॒नु॒ष्वच्छं॑भू॒ आ ग॑तं ॥
Translation:
शंभू - Oh the happiness giving Ashwini!
मानुष्वत् - Like Manu.
विवस्वत - Assistant to Yajman.
ववसाना- One who stays home.
सोमस्य - Of SomB
पीत्या - To drink.
गिरा - For stuti.
आ गतम् - To go.
Explanation Oh Ashwini Kumars! You stay in the minds of yajman and provide happiness. The Yajmans offer you service just like Manu. You do come to drink Somras and hear the stuti.
Deep meaning: Acharya is calling out to Parmatma by singing his praises. Ashwini Kumars are the Devtas of good health. So our mind, intelligence, body, chitta, indriyas, desh, kaal and vastu may be suffering through whatever disease, they will be healed. When all our diseases are healed we will attain happiness. We are performing Yagya for this purpose. We surrender our dravya or substance or entities which will make us happy since we are submitting the deepest thing that is our heart to Parmatma. We are doing this out of deep regard to Parmatma.
InspiredBySwamiAnjaninandanDass
#मराठी
ऋग्वेद १.४६.१३
वा॒व॒सा॒ना वि॒वस्व॑ति॒ सोम॑स्य पी॒त्या गि॒रा ।
म॒नु॒ष्वच्छं॑भू॒ आ ग॑तं
भाषांतर
शंभू - हे सुख देणारे अश्विनो!
मानुष्वत् - मनुसारखे
विवस्वति - यजमानांसाठी परिचारक
ववसाना - घरात राहणे
सोमस्य - सोमासाठी
पीत्या - प्राशन साठी
गिरा - स्ततीसाठी
आ गतम् - जाण्यासाठी
।
भावार्थ;हे दिप्तीमान आणि यजमानांचे मनात निवास करून सुख देणारे अश्विनी कुमार! मनु सारखी श्रेष्ठ परिचर्या करणारे यजमान जवळ निवास करणारे अश्विनी कुमार! आपण दोघे सोमपान करण्यासाठी व स्तुती ह्यांच्या साठी यज्ञात यावे।
गूढार्थ:आचार्य स्तुती करत आहेत,आवाहन करीत आहेत, कारण की अश्विनी कुमार निरोगी करणारे देवता आहेत, आपल्या मनात, चित्त मध्ये, बुद्धी मध्ये, विचार मध्ये, इंद्रियां मध्ये, देशात, काळा मध्ये आणि वस्तू ह्यात जे काही रोग असतील त्यांचे निराकरण होइल, जेव्हा सगळे रोग मिटून जाणार तेव्हा आम्ही सुखी होणार,म्हणून आम्ही यज्ञाच्या माध्यमातून स्तुती करतो, यज्ञाचे भाव त्याग असते, यज्ञात आम्ही द्रव्याचा त्याग करतो, द्रव्याचे अर्थाने आम्ही द्रवीत होते, आम्ही आपली सर्वात खोल वस्तू म्हणजे आपल्या हृदय परमत्म्याला समर्पित करतो, आम्ही परमात्मा प्रीतीयर्थ ह्यांचे नियोजन करतो,
#हिन्दी
ऋग्वेद १.४६.१३
वा॒व॒सा॒ना वि॒वस्व॑ति॒ सोम॑स्य पी॒त्या गि॒रा ।
म॒नु॒ष्व,च्छं॑भू॒ आ ग॑तं ॥
अनुवाद:
शंभू - जो सुखदेनेवाले वो अश्विनी कुमार!
मानुष्वत् - मनु की तरह।
विवस्वति - परिचारक यजमान के।
ववसाना -घर पर रहनेवाले।
सोमस्य - सोम के।
पीत्या - पीने के।
गिरा - स्तुति के लिए।
आ गतम् - जाना।
भावार्थ:हे प्रकाशमान और यजमानों के मन में निवास करने वाले और सुखदायक अश्विनी कुमार!मनु जैसे श्रेष्ठ परिचर्या करने वाले अश्विनी कुमार! आप सोमपान और स्तुति के निमित्त यज्ञ में आएं।
गूढार्थ: आचार्य स्तुति करते हैं आवाहन करते हैं। अश्विनी कुमार निरोग करनेवाले देवता हैं। तो मन में बुद्धि में विचार में, चित्त में, इन्द्रियों में देश में काल में वस्तु में जो रोग है उसका वे निराकरण करेंगे।जब सारे रोग मिट जाएंगे तब हम सुखी हो जाएंगे। यज्ञ के माध्यम से उनकी स्तुति की जा रही है। यज्ञ का भाव होता है त्याग। यज्ञ में हम द्रव्य का त्याग करते हैं। द्रव्य याने द्रवित होना। हम अपनी सबसे गहरी वस्तु का त्याग कर रहें हैं अर्थात अपना हृदय परमात्मा को समर्पित कर रहे हैं। तो परमात्मा प्रीत्यर्थ हम इन सबका नियोजन कर रहें हैं।
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