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  • Writer's pictureAnshul P

RV 1.46.4


Rig Ved 1.46.4


In the Vast form of its existence, the Universe has many Lokas. So each Lok has a different set of food for its nourishment. One of the primary work for Surya dev is to produce food for nurturing. Food will give strength then only one can indulge in welfare work. Here Surya dev is being worshipped for this reason.


ह॒विषा॑ जा॒रो अ॒पां पिप॑र्ति॒ पपु॑रिर्नरा ।

पि॒ता कुट॑स्य चर्ष॒णिः


Meaning:


नरा - Oh the leader Ashwini!


अपाम् - Of water.


जारः - To dry.


पपुरिः - Nurturer.


पिता - Guardian.


कुटस्य - Of work.


चर्सणिः - Surya, the observer.


हविषा - Offerings.


पिपर्ती - To satisfy Devtas.


Explanation: Oh Ashwini Kumars! The father like protector who dries the errant waters, nurturer, the observer, we satisfy you through our offerings. This means Surya dev nurtures the mankind through food grains and offers nutrition to this wide universe.


Deep meaning. In the Vast form of its existence, the Universe has many Lokas. So each Lok has a different set of food for its nourishment. One of the primary work for Surya dev is to produce food for nurturing. Food will give strength then only one can indulge in welfare work. Here Surya dev is being worshipped for this reason.


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📷 Credit - Pratik sir


#मराठी


ऋग्वेद १.४६.४


ह॒विषा॑ जा॒रो अ॒पां पिप॑र्ति॒ पपु॑रिर्नरा ।

पि॒ता कुट॑स्य चर्ष॒णिः


भाषांतर:


नरा - हे नेता अश्विनी!


अपाम् - पाण्याचे


जारः - कोरडे करणारे


पपुरिः - पोषक


पिता - पालनकर्ता


कुटस्य - कर्माचे


चर्सणिः - निरीक्षके सारखे सूर्य


हविषा - हवी


पिपर्ती - देवांना संतुष्ट करणे


भावार्थ;:हे अश्विनी कुमारानो!पाण्यास सुकवनारे वडिलांचे रूप, पोषणकर्ता, कार्य द्रष्टा सूर्यदेव आपल्या हवी ने आपल्यास संतुष्ट करतो

, अर्थात सूर्यदेव प्राणी मात्राच्या पोषणासाठी धन धान्य उगवून प्रकृती साठी विराट आहुती देत आहे.


गूढार्थ: ह्या विश्वाचे विराट स्वरूपात सर्व लोक समाहित असतात. ते इथले सर्व लोकांचे आहाराने होईल, ह्या साठी अनेक प्रकाराचे अन्न लागत असतात. अन्न ह्याला उत्पन्न करून पोषण देण्याचे कार्य सूर्यदेव करतात, अन्न हे बळ देतो तेव्हा तो कल्याणपरक वस्तूंचे योग्य होणार ।

ती योग्यते साठी सूर्यादेवाची स्तुती केली जात आहे.


#हिंदी


ऋग्वेद १.४६.४


ह॒विषा॑ जा॒रो अ॒पां पिप॑र्ति॒ पपु॑रिर्नरा ।

पि॒ता कुट॑स्य चर्ष॒णिः


अनुवाद:


नरा - हे नेता अश्विनी!


अपाम् - जल के।


जारः - सुखाने वाले।


पपुरिः - पोषक।


पिता - पालनकर्त्ता।


कुटस्य - कर्म के।


चर्सणिः - सूर्य निरिक्षक की तरह।


हविषा - हवि।


पिपर्ती - देवों को संतुष्ट करें।


भावार्थ:हे अश्विनी कुमारों! जल को सुखानेवाले पिता रूप, पोषणकर्ता कार्य द्रष्टा सूर्यदेव हम हमारी हवि से आपको संतुष्ट करते हैं।अर्थात सूर्यदेव प्राणिमात्र के पोषण के लिए अन्न आदि उगाकर प्रकृति के लिए विराट आहुति दे रहें हैं।


गूढार्थ:इस विश्व के विराट स्वरूप में सारे लोक आ जाते हैं।यहां स्थित सारे लोकों का पोषण करना पड़ेगा आहार से। इसके लिए अनेक प्रकार के अन्न की आवश्यकता पड़ेगी।अन्न को उत्पन्न करने और पोषण करने का कार्य सूर्यदेव करते हैं। अन्न से बल बढ़ेगा तब वह कल्याणकारी चीजों के योग्य बनेगा।उसी योग्यता के लिए सूर्यदेव की स्तुति की जा रही है।

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