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RV 1.47.5

Rig Ved 1.47.5


You are the one who accepts our service and go for expansion of Yagya making it divine through your object of human pursuit who also expand the Shrutis to provide us happiness. Our ignorance will be destroyed through this sort of happiness. This combination will give us power and everything will be wonderful in experience. To benefit from this experience we have to take support of Shruti. This support will be provided by Guru. Yukti also means to explain by example. These Yuktis or combination will provide the right thing. These things achieved through mantra and i.e Yagya, Now Yagya is Dravya yagya, Tapo yagya and Svadhyay. Dravya means getting the means or utilities, Tapoyagya means endurance and tolerance, knowing yourself through deep thought is Swadhyaay. So it is here that through these combinations we surrender to our Guru i.e Parmatma and ask questions.


याभिः॒ कण्व॑म॒भिष्टि॑भिः॒ प्राव॑तं यु॒वम॑श्विना ।

ताभिः॒ ष्व१॒॑स्माँ अ॑वतं शुभस्पती पा॒तं सोम॑मृतावृधा ॥


Translation:


अश्विना - Ashwini Kumar's!


युवम - Both.


याभिः - Theirs.


अभिष्तिभिः - For necessary protection.


कण्वम - Son of kanv.


प्रावतम - Protected.


शुभस्पति - One who protects good Karmas.


ताभिः - Theirs.


अस्मान् - Ours too.


सु अवतम - Protected in good way.


ऋतावृद्धा - Yagya Expander.


सोमम - Somaras.


पातम - To drink.


Explanation : Oh Yagya expannder and the nurturer of good deeds Ashwini Kumar!You protect us the same way with desired protection gear, the way you protected the sons of Kanv.


Deep meaning: You are the one who accepts our service and go for expansion of Yagya making it divine through your object of human pursuit who also expand the Shrutis to provide us happiness. Our ignorance will be destroyed through this sort of happiness. This combination will give us power and everything will be wonderful in experience. To benefit from this experience we have to take support of Shruti. This support will be provided by Guru. Yukti also means to explain by example. These Yuktis or combination will provide the right thing. These things achieved through mantra and i.e Yagya, Now Yagya is Dravya yagya, Tapo yagya and Svadhyay. Dravya means getting the means or utilities, Tapoyagya means endurance and tolerance, knowing yourself through deep thought is Swadhyaay. So it is here that through these combinations we surrender to our Guru i.e Parmatma and ask questions.


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📷 Credit - Sagar Rajput sir


# मराठी


ऋग्वेद १.४७.५


याभिः॒ कण्व॑म॒भिष्टि॑भिः॒ प्राव॑तं यु॒वम॑श्विना ।

ताभिः॒ ष्व१॒॑स्माँ अ॑वतं शुभस्पती पा॒तं सोम॑मृतावृधा ॥


भाषान्तर:


अश्विना -अश्विनी कुमारानो!


युवम - दोघे


याभिः - त्यांचे


अभिष्तिभिः - अपेक्षित रक्षे साठी


कण्वम - कण्व पुत्र


प्रावतम - रक्षित


शुभस्पति - सुंदर करमांची रक्षा करना

करणारे.


ताभिः - त्यांची.


अस्मान् - आमच्या पण.


सु अवतम - उत्तम पध्दती ने रक्षण.


ऋतावृद्धा - यज्ञ विस्तारक.


सोमम - सोमरस.


पातम - प्राशन करा.


भावार्थ:हे यज्ञ विस्तारक, शुभ कर्मांचे पोषण करणारे अश्विनी कुमार! आपण जे इच्छित रक्षा साधनांने कण्व ह्यांचे रक्षण केले, त्याच प्रकारे आमचे पण रक्षण करा आणि सोमरसाचे प्राशन करावेत.


गूढार्थ:आमची सेवा स्वीकृत करणारे व यज्ञाचे विस्तार करणारे अर्थात, पुरुषार्थास दिव्य बनविणारे अश्विनी कुमार, आणि श्रुतीस वाधवणारे, सुख प्रदान करणारे आहात, सुख देणारे ह्यांच्या अनुषंगाने आज्ञानाची निवृत्ती होईल, त्यामुळे युक्तीने, शक्तीने, अनुभवाने सर्व काही अद्भुत धडेल, अनुभवासाठी आम्ही श्रुतीचा सहाय्य घेऊ, श्रुतीचा आश्रय सद्गुरू देईल, युक्तीचे तात्पर्य उदाहरणाने समजून घेणे, हे युक्तिनमुळे वास्तविक वस्तू प्राप्त होईल, मंत्रांचे माध्यामातून प्राप्त वस्तू म्हणजे यज्ञ, यज्ञ काय आहे, द्रव्ययज्ञ, तपोयज्ञ स्वाध्याय हेच यज्ञ आहेत, द्रव्य म्हणजे साधन सामग्री, नन्तर येतो तपोयज्ञ, तीतीक्षा, सहनशीलता हे झाले तप, आत्मेची परमात्म्याची एकटा योग आहे, जे धडत असतो तो स्वाध्याय आहे, युक्तीने आम्ही आमचे गुरू अश्विनी कुमार ह्यांच्या कडे समर्पित होऊन ते आम्हास अज्ञान ह्यातून बाहेर काढून त्याना प्रश्न करू हे त्याची प्रक्रिया आहे.


#हिंदी


ऋग्वेद १.४७.५


याभिः॒ कण्व॑म॒भिष्टि॑भिः॒ प्राव॑तं यु॒वम॑श्विना ।

ताभिः॒ ष्व१॒॑स्माँ अ॑वतं शुभस्पती पा॒तं सोम॑मृतावृधा ॥


अनुवाद:


अश्विना - अश्विनी कुमारों!


युवम - , आप दोनों।


याभिः - उन्हीं।


अभिष्तिभिः - अपेक्षित रक्षा द्वारा।


कण्वम - कण्व को।


प्रावतम - रक्षित।


शुभस्पति - हे सुंदर कर्म की रक्षा करनेवाले।


ताभिः - जिस।

अस्मान् - हमारी भी।


सु अवतम - अच्छी प्रकार से रक्षा।


ऋतावृद्धा - यज्ञ का विस्तार करनेवाले


सोमम - सोम का।


पातम - पान कीजिये।


भावार्थ:हे यज्ञ के विस्तारक शुभ कर्मों का पोषण करनेवाले अश्विनी कुमारों! आपने जिन इच्छित रक्षा साधनों से कण्व की रक्षा की उसी तरह हमारी भी रक्षा करें और सोमरस का पान करें।


गूढार्थ: हमारी सेवा को स्वीकार करनेवाले और यज्ञ को बढ़ाने वाले अर्थात पुरषार्थ को दिव्य बनानेवाले अश्विनों और श्रुति को बढ़ाने वाले सुख प्रदान करणेवाले! तो सुख देनेवाले से ही अज्ञान की निवृत्ति होगी।उसमें युक्ति से, शक्ति से, अनुभव से, सब कुछ अदभुत होगा। अनुभव में आने के लिए हमें श्रुति का सहारा लेना पड़ेगा। श्रुति का आश्रय सद्गुरु देगा।युक्ति का तातपर्य उदाहरण द्वारा समझाना। इन्ही युक्तियों से वास्तविक वस्तु प्राप्त होगी।मन्त्र द्वारा प्राप्त वस्तु ही यज्ञ है ।यज्ञ क्या है,द्रव्ययज्ञ, तपोयज्ञ, स्वाध्याय, ये ही यज्ञ हैं।द्रव्य माने साधन, समाग्री इसके बाद तपोयज्ञ आता है तितिक्षा सहनशीलता यही तप है आत्मा और परमात्मा की एकता योग हो गया। जो हो रहा है वही स्वाध्याय है।शास्त्र द्वारा अपने को जानने का जो चिंतन मनन है, वही स्वाध्याय है। युक्ति द्वारा हम अश्विनी कुमार का,अपने गुरु का जो हमे अज्ञान से बाहर करनेवाले हैं हम उनके प्रति समर्पित होकर उनसे प्रश्न करेंगे, यह उसकी प्रक्रिया है।

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