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Writer's pictureAnshul P

RV 1.47.6


Rig Ved 1.47.6


Here the prayer is for protection. Our body is also a means to protection. The things required for protection should be gathered so there is no distraction. A capable Guru is also an Ishwar swarup. He has the ability to destroy anything unruly. Scriptures says

कर्तुम,अकर्तुम ,अन्यथा कर्तुम meaning to do a job which was impossible. He fulfills the gap of insufficiency of his Shishya. Guru has the skill to fill the gap of anything the Shishya lacks so that he can politely ask questions. Therefore he bows down to Guru which is called Wealth. If the question is illogical, the Guru will never come out to give answers but will be behind cover. A capable Shishya has all the good qualities of politeness, and there will be no ego. Audacity is related to ego. Pride in anything either body things or anything makes your Chittha impure. Whoever is away from this, is eligible for the goodness. Here Ashwini Kumar are in the dual role of Ishwar and Guru. He is Omniscient and all encompassing Ashwini Kumar is everywhere be it animate or inanimate. He is the ruler, the best. Friendship is with equals. A Sadhak is rich in wealth through these qualities. This is the Prayer.

सु॒दासे॑ दस्रा॒ वसु॒ बिभ्र॑ता॒ रथे॒ पृक्षो॑ वहतमश्विना ।

र॒यिं स॑मु॒द्रादु॒त वा॑ दि॒वस्पर्य॒स्मे ध॑त्तं पुरु॒स्पृहं॑ ॥

Translation:

सुदासे - King giving good charity.

दस्त्रा - To be seen.

वसु - Of Wealth.

विभ्रता - To carry.

रथे - On Charit.

प्रुक्षः - For foodgrains.

वहतम - To carry.

अश्विनो - Ashwini Kumars!

रयिम्- Wealth.

समुद्रात - In space.

अस्में - Us.

उत वा - Or.

पुरुस्पर्हम - With big goals.

Explanation:Ashwini Kumar's, the one who is fierce to his enemies! You carried the wealth on your chariot to give it to King. Similarly carry the wealth in your chariot from Space or Ocean for us.

Deep meaning: Here the prayer is for protection. Our body is also a means to protection. The things required for protection should be gathered so there is no distraction. A capable Guru is also an Ishwar swarup. He has the ability to destroy anything unruly. Scriptures says

कर्तुम,अकर्तुम ,अन्यथा कर्तुम meaning to do a job which was impossible. He fulfills the gap of insufficiency of his Shishya. Guru has the skill to fill the gap of anything the Shishya lacks so that he can politely ask questions. Therefore he bows down to Guru which is called Wealth. If the question is illogical, the Guru will never come out to give answers but will be behind cover. A capable Shishya has all the good qualities of politeness, and there will be no ego. Audacity is related to ego. Pride in anything either body things or anything makes your Chittha impure. Whoever is away from this, is eligible for the goodness. Here Ashwini Kumar are in the dual role of Ishwar and Guru. He is Omniscient and all encompassing Ashwini Kumar is everywhere be it animate or inanimate. He is the ruler, the best. Friendship is with equals. A Sadhak is rich in wealth through these qualities. This is the prayer.

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#मराठी

ऋग्वेद १.४७.६

सु॒दासे॑ दस्रा॒ वसु॒ बिभ्र॑ता॒ रथे॒ पृक्षो॑ वहतमश्विना ।

र॒यिं स॑मु॒द्रादु॒त वा॑ दि॒वस्पर्य॒स्मे ध॑त्तं पुरु॒स्पृहं॑ ॥

भाषांतर:

सुदासे - सुंदर दान देणारे राजा,

दस्त्रा - बघण्यासाठी।

वसु - धनाची,

विभ्रता - धारण करणे,

रथे - रथात,

प्रुक्षः - धन धान्य।

वहतम - वहन करणे,

अश्विनो - अश्विनी कुमारानो!

रयिम्- धन,

समुद्रात - अंतराळात

अस्में - आमचे,

उत वा - अथवा

पुरुस्पर्हम - अनेकांशी स्पृहा,

भावार्थ:शत्रूंसाठी उग्र रूप धारण करणारे अश्विनी कुमारानो!आपल्या रथात धन धारण करून राजाकडे आपण पाठविले, त्याच प्रमाणे अंतरिक्ष किव्हा समुद्राकडून धन धारण करून आम्हास द्यावे

गूढार्थ:इथे रक्षणासाठी प्रार्थना केली जात आहे, त्यात शरीर पण साधन आहे,रक्षणाच्या साधनाची आपूर्ती केली जात आहे विक्षेप रोखण्यासाठी,सामर्थ्यवान गुरू पण ईश्वर स्वरूप आहे, शिष्यांची सर्व उपद्रव शांत करतात, गीता मध्ये म्हटले आहे करतुम अकरतुम अन्यथा करतुम म्हणजे न धडणारे कार्य पण पूर्ण होतील, ते शिष्यांचे अभाव पण दूर करतील, गुरू ह्या प्रयोजनाची सिद्धी पण करवून देईल कारण ह्याच्यासाठी प्रार्थना आहे ती विनम्रतेने आणि अहंच्या आभावात प्रश्न पण केले जातील, म्हणून प्रणिपात म्हटले आहे ज्याचे अर्थ आहे धन, एक कुतर्क ह्याने प्रश्न केले जाते ज्याला आदर भेटत नाहीं कारण गुरू समोर येणार नाही, त्या शिष्यांची पात्रता नाही, जे पात्र असतील त्यांच्या अभिमान मध्ये दुसाहसची प्रबलता असते अभिमान नसणार पण ते विनम्र असतील, अभिमान धारण करणारे चित्त अशुद्ध आहे, ह्या दुर्गुण पासून दूर असणारा ह्याचे अधिकारी आहेत अश्विनी कुमार इथे सद्गुरु आणि ईश्वराच्या रूपात आहे, ते सर्वज्ञ सर्व व्यापक आणि स्वर्गाचे ईश्वर आहेत, सर्व काही अश्विनी कुमारांचे अधीन आहे जड़ असो की चेतन ,ते शासक आणि श्रेष्ठ.आहेत बरोबरींच्या लोकांसह मैत्री असते , ह्यांच्या मुले साधक सम्पन्न होते ह्यासाठी प्रार्थना केली जात आहे,

#हिन्दी

ऋग्वेद १.४७.६

सु॒दासे॑ दस्रा॒ वसु॒ बिभ्र॑ता॒ रथे॒ पृक्षो॑ वहतमश्विना ।

र॒यिं स॑मु॒द्रादु॒त वा॑ दि॒वस्पर्य॒स्मे ध॑त्तं पुरु॒स्पृहं॑ ॥

अनुवाद:

सुदासे - सुंदर दान देनेवाला राजा।

दस्त्रा - देखने लायक।

वसु - धन का।

विभ्रता - धारण करना।

रथे - रथ पर।

प्रुक्षः - अनाज को।

वहतम - वहन करना।

अश्विनो - अश्विनी कुमारों!

रयिम्- धन।

समुद्रात - अंतरिक्ष से

अस्में - हमे।

उ तवा - अथवा।

पुरुस्पर्हम - बहुतो से स्पृहा।

भावार्थ: शत्रुओ के लिए उग्र रूप धारण करने वाले अश्विनों!रथ में धन धारण कर आपने राजा को पहुंचाया। इसी प्रकार समुद्र या अंतरिक्ष से लाकर बहुत सारा धन हमे पहुचाएं।

गूढार्थ:- यहां रक्षा करने के लिए प्रार्थना की जा रही है। रक्षा करने में शरीर भी साधन है। रक्षा के साधन की आपूर्ति होनी है ताकि विक्षेप न हो। समर्थवान गुरु भी ईश्वर स्वरूप ही हैं। शिष्य के समस्त उपद्रव को भी शांत करते हैं। शास्त्रो में कहा है करतुम अकारतुम अन्यथाकारतुम, अर्थात जो न होने वाले कार्य को भी पूरा कर दे। शिष्य के अभाव को दूर करते हैं। तो गुरु इस प्रयोजन की सिद्धि भी करा दे क्योंकि इसमें प्रयोजन की सिद्धि के लिए जो प्रार्थना है वह विनम्रता के साथ प्रश्न भी करना चाहिए। इसलिये प्रणिपात कहा गया है, जिसका अर्थ है धन। एक प्रश्न होता है कुतर्क भरा जिसका कोई आदर नही।इसके लिए गुरु सामने प्रकट नही होंगे। आवरण में छिपे रहेंगे क्योंकि शिष्य में पात्रता नही है। पात्र शिष्यों में सारे गुण आ जाते हैं। विनम्रता होगी और अहम का आभाव होगा। दुःसाहस और अहंकार की प्रबलता से होता है। मिथ्या अभिमान देहाभिमान अनेको अभिमान आ जाते हैं।अभिमान धारण करनेवाला अशुद्ध चित्त है। समस्त वस्तु से जो इसके दूर है, वही इसका अधिकारी है। अश्विनी कुमार या ईश्वर, सद्गुरु के रूप में है।वे सर्वज्ञ सर्वव्यापक और स्वर्ग के ईश्वर हैं। इसके साथ ही अश्विनी कुमार सब उनके अधीन है चाहे जड़ हो या चेतन, वे शासक हैं, श्रेष्ठ हैं। समानता वाले से मैत्री की जाती है।इन्ही के साथ साधक सम्पन्न होता है। इसीलिये यह प्रार्थना की जा रही है।

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