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Writer's pictureAnshul P

RV 1.6.3

Rig Ved 1.6.3


केतु कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे ।

समुषद्भिरजायथाः ॥


Translation:-


केतु - Knowledge.


कृण्वन्नकेतवे :-

A}कृण्वन् - By doing this.

B}अकेतवे - Without Knowledge.


पेशो will become पेशा - Knowledge of face or looks.


मर्या - Ohh Human beings!


अपेशसे - Things which does not have looks nice.


समुषद्भिरजायथाः - Morning's Sunrays and Sunshine.


Ajayatha - Sun rising.


Explanation:- This Richa is dedicated to Indra dev in the form of Sun God. It Quotes"Ohh Human beings! Just like good looking early morning Sun rise removes the unpleasant darkness of universe, Same way a knowledgeable person should remove darkness of that person who is without knowledge by preaching him spirituality which will spread positivity inside him. This Richa also teaches us that we get born everyday as we sleep everyday with our real mind switch off and switch on the moment we get up in the morning.




#मराठी


ऋग्वेद १.६.३


केतु कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे ।

समुषद्भिरजायथाः ॥


भाषांतर:-


केतु - ज्ञान.


कृण्वन्नकेतवे :-

A}कृण्वन् - करत आस्ताना.

B}अकेतवे - ज्ञानाशिवाय.


पेशो ( पेशा) - रूप ची माहिती.


मर्या - हे मनुष्यों!


अपेशसे - पदार्थ जयमधे रूप नस्तो.


समुषद्भिरजायथाः - सूर्याची किरण.


Ajayatha - सूर्योदय.


भावार्थ:- हे ऋचा सूर्य देवतेच्या स्वरूपात इंद्र देवांना समर्पित आहे. "ओह मनुष्या!" असे म्हणता येईल की सूर्य लवकर उगवताना विश्वाचा अप्रिय अंधार काढून टाकतो त्याचप्रमाणे एक ज्ञानी व्यक्तीने त्या व्यक्तीचे अंधकार काढून टाकले पाहिजे त्या अज्ञानी व्यक्तिला अध्यात्माने उपदेश देऊन ज्ञानातून त्याच्या आत सकारात्मकता पसरवले पाहिजे. या मंत्र शिकवतो की आपण दररोज जन्म घेतात, दररोज आपल्या खर्या मनाच्या झोपेतून बंद अस्तो आणि सकाळी उठताच ते खर्या मन चालू होतो.


#हिंदी


ऋग्वेद १.६.३


केतु कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे ।

समुषद्भिरजायथाः ॥


अनुवाद:-


केतु - ज्ञान.


कृण्वन्नकेतवे :-

A}कृण्वन् - कराते हुए।

B}अकेतवे - ज्ञान रहित।


पेशो ( पेशा) - रूप का ज्ञान।


मर्या - हे मनुष्यों!


अपेशसे - रूप रहित पदार्थो को।


समुषद्भिरजायथाः - प्रातः काल की रश्मियों से या किरणों से।


Ajayatha - उदित होते है


भावार्थ:-


यह ऋचा सूर्य देव के रूप में इंद्र देव को समर्पित है। यह उद्धृत करता है, "हे मनुष्यों! प्रातः काल अच्छा दिखने वाला सूर्य उदय ब्रह्मांड को अप्रिय अंधकार से दूर करता है, उसी तरह एक ज्ञानी व्यक्ति को उस अज्ञानी व्यक्ति के अंधेरे को दूर करना चाहिए जो उसे आध्यात्मिकता का उपदेश ज्ञान देना चाहीए जो उसके अंदर सकारात्मकता फैलाएगा।"

ऋचा हमें यह भी सिखाता है कि हम रोज़ जन्म लेते हैं क्योंकि हम हर रोज़ सोते हैं और जब निद्रा में रहते है तो हमारा दिमाग़ बंद हो जाता है और सुबह उठते ही वह दिमाग चालू हो जाता है।





https://twitter.com/Anshulspiritual/status/1100459388534509570?s=19

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