Rig Ved 1.7.1
इंद्रमिद्गाथिनो बृहदिंद्रमर्केभिरर्किणः।
इंद्रं वाणीरनूषत ॥
Translation:-
इंद्रमिद्गाथिनो :-
A}इंद्रम् - Of Indra dev.
B}गाथिन: - Group of Singers singing Sam ved.
बृहदिंद्रमर्केभिरर्किणः :-
A}बृहत् - In this richa(mantra) creation of Brahad named Sam ved singing group.
B}इन्द्रम् इत् - Only of Indra dev.
C}अर्केभि - With the help of Mantra.
D}अर्किणः - For the purpose of Worship through Mantras (Yajmaan/Devotees)
इंद्रम् - Of Indra dev.
वाणीरनूषत :-
A}वाणी - By Voice.
B}अनूषत - Praised with the help of chanting Indra dev Hyms.
Explaination:- This Mantra seems to state that Udhgaata(Group of SAAM VED singers), Yajmaan/Devotees, Devoted followers.etc are praising Indra dev with hyms and worship through mantras. This is how this mantra is trying to explain the qualities and importance of Indra dev.
#मराठी
ऋग् वेद१.७.१
इंद्रमिद्गाथिनो बृहदिंद्रमर्केभिरर्किणः।
इंद्रं वाणीरनूषत ॥
भाषांतर:-
इंद्रमिद्गाथिनो :-
अ}इंद्रम् - इंद्रदेवाचा.
ब}गाथिन: - सामवेद गायकांचे समूह.
बृहदिंद्रमर्केभिरर्किणः :-
अ}बृहत् - ह्या ऋचा(मंत्र)चे निर्माणात बृहत्त नावाचे सामवेद गाणारे लोकांचे समूह.
ब}इन्द्रम् इत् - इंद्रदेवांचे.
स}अर्केभि - मंत्रांच्या सहाय्याने.
ड}अर्किणः - मंत्रांच्या सहाय्याने केलेली अर्चना (यजमान ).
इंद्रम् - इंद्रदेवांचा.
वाणीरनूषत :-
अ}वाणी - वाणीच्या माध्यमातून.
ब}अनूषत - इंद्रदेवांचे वैशिठ्य सांगणारी ऋचा.
भावार्थ:
ह्या मंत्राचा किंचित असे प्रतिपादले आहे की उदगाता (साम वेद ऋचा गाणारे),यजमान आणी त्यांचे निष्ठावंत भक्त मंत्रांचा गायन करून त्यांची प्रशंसा आणी भक्ति करीत आहेत. ह्या ऋचाच्या माध्यमातून ते इंद्रदेव ची वैशिॆष्ठये आणी महत्ता गाण्याचा माध्यमातून सांगतात.
#हिंदी
ऋग् वेद१.७.१
इंद्रमिद्गाथिनो बृहदिंद्रमर्केभिरर्किणः।
इंद्रं वाणीरनूषत ॥
अनुवाद:-
इंद्रमिद्गाथिनो :-
A}इंद्रम् - इंद्र देव की।
B}गाथिन: - उद्गाता(साम वेद गाने वाले समुह) लोगो ने।
बृहदिंद्रमर्केभिरर्किणः :-
A}बृहत् - इस ऋचा से उत्पन्न बृहत्नामक साम वेद गायन के द्वारा
B}इन्द्रम् इत् - इंद्र देव की ही।
C}अर्केभि - मंत्रो के द्वारा।
D}अर्किणः - अर्चना के हेतु मंत्रो से युक्त(हवन करने वाले यजमान)।
इंद्रम् - इंद्र देव की।
वाणीरनूषत :-
A}वाणी - वाणियों से।
B}अनूषत - स्तुति गान की थी।
भावार्थ:- इस मंत्र का अभिप्राय यह प्रतीत होता है कि उद्गाता(साम वेद गाने वाले समुह), यजमान, निष्ठावान भक्त आदि सभी यज्ञ कर्म में इंद्र की महिमा का गान करते है। इस प्रकार इस मंत्र में इंद्र देव की विशेषताओं का प्रतिपादन किया है।
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