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Rv 1.9.5

Writer's picture: Anshul PAnshul P

Rig Ved 1.9.5


सं चोदय चित्रमर्वाग्राध इंद्र वरेण्यं ।

असदित्ते विभु प्रभु ॥



Translation:-



सम्+चोदय - In all aspects.


चित्रम् - Various forms of treasures.


इंद्र - Oh Indradev!


वरेण्यं - Best/superior.


त इत्त - Yours.


विभु - For our consumption /use.


असत् - Its there.


राधः - Wealth.


अवार्क्- Distribute to us.


प्रभु - More than that.


Explanation:-


This mantra says that all the treasures and wealth found around this earth belong to Indradev. The devotees request Indradev to shower this wealth towards yajmans for their benefit.



#मराठी


ऋग्वेद १.९.५


सं चोदय चित्रमर्वाग्राध इंद्र वरेण्यं ।

असदित्ते विभु प्रभु ॥



भाषांतर :-


सम्+चोदय - सम्यक रूपाने.


चित्रम् - बहुसंख्य प्रकाराचे.


इंद्र - हे इंद्र!


वरेण्यं - श्रेष्ठ.


ते इत् - आपल्याच आहे.


विभु - आमच्या उपभोगा साठी.


अवार्क - अामच्या बाजूला अभिमुख करणे.


राधः - धन.


असत् -आहे.


प्रभु - त्याचाही पेक्षा अधिक.


भावार्थ :-


ह्या मंत्रात इंद्रदेवांचे वैभवाचे वर्णन आहे.ह्यात म्हटलेले आहे की संसाराचे समस्त धन इंद्रदेवांचे आहे.यजमान निवेदन करतात की ह्या बहुविध प्रकाराचे धन इद्राने भक्तांचा कल्याणा साठी हे सगऴ धन यजमानांचे अभिमुख करावे.



#हिंदी


ऋग्वेद १.९.५


सं चोदय चित्रमर्वाग्राध इंद्र वरेण्यं ।

असदित्ते विभु प्रभु ॥



अनुवाद :-


सम् चोदय - सम्यक रूप से प्रेरित करना।



चित्रम् - बहुविध मणिमुक्तादि।


इंद्र - हे इंद्र!


वरेण्यं - श्रेष्ठ।


असत् - है।


विभु - हमारे उपभोग के लिए।


ते इते् - आपका ही।


अवार्क - हमारी ओर अभिमुख होने के लिए।


राधः - धन।


प्रभु - उससे भी अधिक।


भावार्थ :-

इस मंत्र में कहा गया है कि संसार में पाए जाने वाले सम्यक प्रकार के धन वास्तव में इंद्र के ही हैं। यजमान इंद्र से निवेदन करते हैं की इंद्रदेव वह धन भक्तों के कल्याण के लिए उस धन को यजमानो की ओर अभिमुख करें।



https://twitter.com/Anshulspiritual/status/1168211036651962368?s=19

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