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Rv 1.9.6

Writer's picture: Anshul PAnshul P

Rig Ved 1.9.6


अस्मान्त्सु तत्र चोदयेंद्र राये रभस्वतः ।

तुविद्युम्न यशस्वतः ॥


Translation:-


अस्मान् - We(priests) .


इंद्र - Oh Indradev!


तत्र - Towards duty and responsibility.


सु चोदये - In all aspects.


राये - For attaining wealth.


रभस्वतः - Trying to attain wealth.


तुविद्युम्न - Oh ! the owner of excessive wealth.

यशस्वतः - To attain fame.


Explanation:-


In this mantra the priests request Indradev that he is the God with lots of wealth. The devotees and priests want to attain wealth and fame. So Indradev should

guide them to work responsibly towards the attainment of fame and wealth through their path of duty.

This mantra tells us to carry out our duties with responsibilities to attain our goal.


#मराठी


ऋग्वेद १.९.६


अस्मान्त्सु तत्र चोदयेंद्र राये रभस्वतः ।

तुविद्युम्न यशस्वतः ॥


भाषांतर :-


अस्मान् - आम्ही (प्रार्थी).


इंद्र - हे इंद्रदेव!


तत्र - कर्मांच्या मार्गी.


सु चोदये - सम्यक रूपात.


राये - धन प्राप्ति साठी.


रभस्वतः - धन प्राप्ति साठी प्रयत्नशील.


तुविद्युम्न - हे अकूत धनाचे स्वामी.

यशस्वतः - यश प्राप्ति ची इच्छा.


भावार्थ :-


ह्या मंत्रात ऋषिगण इंद्रदेवांना प्रार्थना करून म्हणत आहेत की इंद्रदेव तर अपार धनाचे स्वामी आहेत. आम्ही धन आणी यशाचे प्रार्थी आहोत. इंद्रदेवांने आम्हाला कर्मानुष्ठानाच्या मार्गी यश आणी धन प्राप्तिची इच्छा पूर्ण करावी.

ह्या मंत्रात आम्हाला कर्मनिष्ठ होण्याची बातमी सांगितली देसी आहे.



#हिंदी


ऋग्वेद १.९.६


अस्मान्त्सु तत्र चोदयेंद्र राये रभस्वतः ।

तुविद्युम्न यशस्वतः:-


अस्मान् - हम(अनुष्ठान कर्ता) ।


इंद्र - हे इंद्र!


तत्र - उन कर्मों के प्रति।


सु चोदये - सभी प्रकार से प्रेरित करना।


राये - धन प्राप्त करानेवाली सिद्धि ।


रभस्वतः - धन प्राप्त करने के लिए प्रयासरत्।


तुविद्युम्न - हे अकूत धन वाले देव!

यशस्वतः - यश पाने की इच्छा रखना।


भावार्थ :-


इस मंत्र में ऋषिगण इंद्रदेव को निवेदित करते हुए कहते हैं कि हम धन और यश दोनो की प्राप्ति करने की इच्छा रखते हैं,इसलिए हे इंद्रदेव आप ही प्रभूत धन के स्वामी हो।आप हमें उसी दिशा की ओर कर्म करने के लिए प्रेरित करें ताकि हमें यह दोनो प्राप्त हों।

इस मंत्र में कर्म करने का संकेत कहता है कि हम निरंतर गतिशील और प्रयास रत् रहकर ही कुछ पा सकते हैं।



https://twitter.com/Anshulspiritual/status/1169645560279785478?s=19

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