We can see and know Parmatma through our inner knowledge (Gyan Chakshu) according to Rig Ved 1.22.20
तद्विष्णोः॑ पर॒मं प॒दं सदा॑ पश्यंति सू॒रयः॑ ।
दि॒वी॑व॒ चक्षु॒रात॑तं ॥
Translation:-
विष्णोः॑ - Of Vishnudev.
तत् - That.
पर॒मम् - Excellent.
प॒दम् - Places in Heaven.
सदा॑ - Always.
पश्यंति - To see.
सू॒रयः॑ - Intelligent Priests(सिद्ध योगी) .
दि॒वी॑ - From the sky.
इव॒ - In that way.
चक्षु॒ - The rays of the sun.
आत॑तम् - Present all around.
Explanation:- This mantra says that a man can see the Sun shining through his naked eyes similarly an intellegent Priest can see the steps or that place in heaven where Vishnudev pervades(व्याप्त) everywhere.This means that intelligent people can clearly see all the deeds performed by Vishnudev.
Deep meaning: We can see and know Parmatma through our inner knowledge (Gyan Chakshu).
#मराठी
ऋग्वेद १.२२.२०
तद्विष्णोः॑ पर॒मं प॒दं सदा॑ पश्यंति सू॒रयः॑ ।
दि॒वी॑व॒ चक्षु॒रात॑तं ॥
भाषांतर :-
तत् - त्या.
विष्णोः॑ - विष्णूदेवाचा.
पर॒मम् - उत्कृष्ठ.
प॒दम् - स्वर्ग स्थानाचा.
सदा॑ - सर्वदा.
पश्यंति - बघणे.
सू॒रयः॑ - विद्वान ऋत्विक.
दि॒वी॑ - आकाशातून.
इव॒ - ज्या प्रकारे.
चक्षु॒ - सूर्याचा प्रकाशाला.
आत॑तम् - सर्व जागी व्याप्त.
भावार्थ :-ह्या मंत्राचा आशय हे आहे की ज्या प्रमाणे आकाशात प्रकाशित सूर्याला मनुष्य साधारण डोळ्याने बघू शकतो, त्याच प्रमाणे विद्वान लोक त्या व्यापक प्रभू विष्णूचे परम पद किंवा स्वर्ग स्थान नेहमीच बघू शकतात.अर्थात विद्वत लोक विष्णू चे प्रत्येक कार्य स्पष्टपणे बघू शकतात.
गूढार्थ: परमात्मा विष्णुदेवआमचे पाद किंवा स्थानाचे दर्शन ज्ञान चक्षु ने करू शकतो.
#हिंदी
ऋग्वेद १.२२.२०
तद्विष्णोः॑ पर॒मं प॒दं सदा॑ पश्यंति सू॒रयः॑ ।
दि॒वी॑व॒ चक्षु॒रात॑तं ॥
अनुवाद :-
तत् - उस।
विष्णोः॑ - भगवान विष्णु के।
पर॒मम् - उत्कृष्ट।
प॒दम् - स्वर्ग स्थान का।
सदा॑ - हमेशा।
पश्यंति - देखना।
सू॒रयः॑ - विद्वान ऋत्विज।
दि॒वी॑ - आकाश में।
इव॒ - जिस प्रकार।
चक्षुः - सूर्य के प्रकाश को।
आततम् - सब जगह व्याप्त।
भावार्थ :- इस मंत्र का आशय है कि जिस प्रकार आकाश में चमकने वाले सूर्य को मनुष्य साधारण आंखों से देख सकता है,उसी प्रकार विद्वान् लोग उस व्यापक प्रभु विष्णु के परम पद या स्वर्ग स्थान को हमेशा अपने ज्ञान चक्षु से देख सकते हैं। अर्थात विद्वान लोग विष्णु के प्रत्येक कार्य को स्पष्टता से देख सकते हैं।
गूढार्थ: परमात्मा विष्णुदेव के पग या स्वर्ग के स्थान का दर्शन ज्ञान चक्षुओं द्वारा किया जा सकता है।
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