Vedas say that Wealth should be earned through the path of Dharma and your hard work,not through deceit or Adharma @ Rig Ved 1.24.4
यश्चि॒द्धि त॑ इ॒त्था भगः॑ शशमा॒नः पु॒रा नि॒दः ।
अ॒द्वे॒षो हस्त॑योर्द॒धे ॥
Translation:-
यः चित्त हि - Well Known and respected.
ते - Through You.
इ॒त्था - From this.
भगः॑ - Specially Wealth.
शशमा॒नः - Praise worthy.
नि॒दःपुरा - Before criticizing.
अ॒द्वे॒षः - Without malice.
हस्त॑योः - From our own hands.
दधे - To hold.
Explanation:- This mantra is addressed to Savitadev.It is well known fact that Wealth is adored everywhere but it should be from positive sources. Therefore Savitadev holds the Wealth that is majestic,Without malice or Without any sort of criticism
Deep meaning: Vedas say that Wealth should be earned through the path of Dharma and your hard work,not through deceit or Adharma.
#मराठी
ऋग्वेद १.२४.४
यश्चि॒द्धि त॑ इ॒त्था भगः॑ शशमा॒नः पु॒रा नि॒दः ।
अ॒द्वे॒षो हस्त॑योर्द॒धे ॥
भाषांतर :-
यः चित्त हि - विख्यात आणि पूजनीय.
ते - आपल्या कडून.
इ॒त्था - ह्या हून.
भगः॑ - धन विशेष.
शशमा॒नः - प्रशंसा योग्य.
निदःपु॒रा - निन्दा किंवा टीके चे पूर्व.
अ॒द्वे॒षः - द्वेष रहित.
हस्त॑योः - स्वयं च्या हाताने.
दधे - धारण करने.
भावार्थ :-हा मंत्र सवितादेव ला संबोधले आहे.म्हटले आहे की हे तर सर्व विदित आहे की धन सर्वां साठी पूजनीय असतो,पण त्याचे अर्जन शुभ माध्यम ने केले पाहिजे.म्हणून सवितादेव जे तेजस्विता पूर्ण, निंदा रहित आणि द्वेष रहित धनाला धारण केलेला आहे, ते धन पूजनीय आहे.
गूढार्थ; वेद सांगतात की धनाला धर्मनिष्ठ माध्यमाने आणि पुरूषार्था ने अर्जित केले पाहिजे अधर्म किंवा छळापासून ने नाही.
#हिंदी
ऋग्वेद १.२४.४
यश्चि॒द्धि त॑ इ॒त्था भगः॑ शशमा॒नः पु॒रा नि॒दः ।
अ॒द्वे॒षो हस्त॑योर्द॒धे ॥
अनुवाद :-
यः चित्त हि - विख्यात और पूजनीय।
ते - आपके द्वारा।
इ॒त्था - इस से।
भगः॑ - धन विशेष।
शशमा॒नः - प्रशंसा योग्य।
निदःपु॒रा - निन्दा से पूर्व।
अ॒द्वे॒षः - द्वेष रहित।
हस्त॑योः - स्वयं के हाथो।
दधे - धारण करना।
भावार्थ :- यह मंत्र सवितादेव को संबोधित है। इसका अभिप्राय यह है कि यह तो सर्व विदित है कि धन सबके लिए पूजनीय है पर उसका अर्जन शुभ माध्यम से किया गया हो।इसलिए सवितादेव तेजस्विता पूर्ण, निंदा रहित और द्वेष रहित धनों को धारण करनेवाले होने के कारण वह धन पूजनीय है।
गूढार्थ:- यहां पर वेद कहते हैं धन को धर्मनिष्ठ तरीके से और पुरूषार्थ से कमाना चाहिए न कि छल से या अधर्म के मार्ग से।
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