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Writer's pictureAnshul P

RV1.26.6

Updated: Jul 15, 2020


This mantra has a bit Scientific touch. Priest(Purohit) means one who looks after the well being of the Deities. If everyone is satisfied then the Deities too are content.Here the usage of the word परोक्ष(indirectly) denotes that principally it is derived from 'Samadhi' language, wherein we say something for someone, some other person listens and the third person actually understands. Here our final destination is dedication towards Parmatma. We send the offerings through the Deities which is then dedicated to Agni, but actually it is sent to Parmatma himself. Parmatma is purity. He is the one who destroys our sorrows. Scientifically we observe that when we add ghee to water it spreads, but when it is added to fire, It spreads in the atmosphere. Similarly our offerings reach Parmatma @ Rigved 1.26.6


यच्चि॒द्धि शश्व॑ता॒ तना॑ दे॒वंदे॑वं॒ यजा॑महे ।

त्वे इद्धू॑यते ह॒विः ॥


Translation

यच्चिद्धी - Although.


शश्वता - From times immemorial.


तना - As per Sanatan rules.


देवं देवम् - All the Deities.


यजामहे - To perform Yagya.


हविः - Vessel where Yagya offerings have been kept.


त्वे इत् - In yourself.


हूयते - Invite Deities through Yagya.


Explanation:This mantra is indirectly addressed to Agnidev.It says that although Indra, Varun etc Deities have been worshipped through prayers, Yagya etc from times immemorial by yajmans through Sanatan rituals, but actually all these karmas are for you(Agni).The primary importance of Agnidev is self proven since the ritual is not complete without the offerings to Agnidev.


Deep meaning: Priest(Purohit) means one who looks after the well being of the Deities. If everyone is satisfied then the Deities too are content.Here the usage of the word indirectly denotes that principally it is derived from 'samadhi' language, wherein we say something for someone, some other person listens and the third person actually understands.Here our final destination is dedication towards Parmatma. We send the offerings through the Deities which is then dedicated to Agni, but actually it is sent to Parmatma himself. Parmatma is purity. He is the one who destroys our sorrows. Scientifically we observe that when we add ghee to water it spreads, but when it is added to fire, It spreads in the atmosphere. Similarly our offerings reach Parmatma.


📸Credit-Bholenath.ke.diwane



#मराठी



ऋग्वेद १.२६.६


यच्चि॒द्धि शश्व॑ता॒ तना॑ दे॒वंदे॑वं॒ यजा॑महे ।

त्वे इद्धू॑यते ह॒विः ॥


भाषांतर:


यच्चिद्धी -यद्यपि.


शश्वता - शाश्वत काळाने.


तना - सनातन रीती तून.


देवं देवम् - प्रत्येक देवाचा.


यजामहे - यजन करणे.


हविः - हवि पात्र.


त्वे इत् - आपल्याच.


हूयते - आहूत.


Explanation:ह्या मंत्रात परोक्ष रूपाने अग्निला संबोधून म्हटले आहे की यद्यपि सनातन काळा पासून इन्द्र, वरूण व इतर देवां साठी पूजन,यजन आणि यज्ञादिचा आयोजन सनातन रीतीने यजमानां द्वारे केले जात आहे तथापि त्या समस्त कर्मांचा समर्पण आपल्या(अग्नि) साठी होतो.अग्निदेवांचे प्राधान्य स्वतः सिद्ध आहे कारण याग पण अग्निला समर्पित केल्याने पूर्ण होत नाही .



गूढार्थ: पुरोहित अर्थात देवतांचे हित करणारा. जेंव्हा सर्वांचे हित होतो तेंव्हा देवतांचे हित पण होतो.परोक्ष शब्दाचा प्रयोग इथे सिद्धांत रूपात समाधी भाषेचा प्रयोग आहे.म्हणजे बोलणारा एक,ऐकणारा दूसरा पण आहे तो तिसऱ्या साठी.लक्ष्य आहे अात्मेचा परमात्मात्याला समर्पण. म्हणजे देवतांचे माध्यमे हवि जाते परमात्माच कडे.परमात्मा शुद्ध स्वरूप आहेत.तेच आमचे दुःख दूर करणारे आहेत.वैज्ञानिक दृष्टीने पाहिले तर तूप पाण्यात टाकले तर तो पसरून जातो पण तेच अग्नि मध्ये टाकल्यास वातावरणात पसरून जातो.तशीच शेवटी हवि जातो परमात्म्याला.



#हिन्दी


यच्चि॒द्धि शश्व॑ता॒ तना॑ दे॒वंदे॑वं॒ यजा॑महे ।

त्वे इद्धू॑यते ह॒विः ॥


ऋग्वेद १.२६.६


अनुवाद: -


यच्चिद्धी - यद्यपि।


शश्वता - शाश्वत समय से।


तना - सनातन रीति से।


देवं देवम् - प्रत्येक देव का।


यजामहे - यजन करना।


हविः - हवि पात्र।


त्वे इत् - आप में ही।


हूयते - आहूत।


Explanation:इस मंत्र में परोक्ष रूप से अग्नि को संबोधित करते हुए कहा गया है कि यद्यापि सनातन समय से ही इन्द्र,वरूण आदि देवों के लिए पूजन,यजन और यज्ञादि का आयोजन सनातन रीति से यजमानो द्वारा किया जा रहा है तथापि उन समस्त कर्मों का समर्पण आप के लिए ही होता है। अग्निदेव की प्रधानता स्वयं ही सिद्ध हो जाती है क्योंकि याग भी अग्नि को समर्पित किये बिना पूरा नहीं होता ।


गूढार्थ:पुरोहित अर्थात देवताओं का हित करनेवाले।सब का हित होता है तो देवताओं का भी हित होगा।परोक्ष शब्द का प्रयोग यहां पर सिद्धांत रूप से समाधि भाषा के रूप में प्रयोग हुआ है,अर्थात कह कोई रहा है,समझ कोई रहा है और कहा किसी और के लिए जा रहा है। लक्ष्य है आत्मा का परमात्मा के प्रति समर्पण,देवताओं के माध्यम से अग्निदेव को हवि पहुँचेगी, अंतत्वगोता वो मिलेगी परमात्मा को ही।शुद्ध स्वरूप तो परमात्मा ही हैं। वे ही हमारे दुख दूर करेंगे।वैज्ञानिक रूप से देखें तो घी पानी में डालने पर फैल जाता है,पर अग्नि में डालने पर वातावरण में फैल जाता है।उसी तरह अंत में हवि पहुंचेगी परमात्मा के ही पास।


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