Here actually it is Parmatma in the form of Varundev, Who is being praised by Shruti Bhagwati (Ved). Also Parmatma helps the devotees to keep away from sins and diseases @ Rig Ved 1.24.9
श॒तं ते॑ राजन्भि॒षजः॑ स॒हस्र॑मु॒र्वी ग॑भी॒रा सु॑म॒तिष्टे॑ अस्तु ।
बाध॑स्व दू॒रे निर्ऋ॑तिं परा॒चैः कृ॒तं चि॒देनः॒ प्र मु॑मुग्ध्य॒स्मत् ॥
Translation :-
ते॑ - Yours.
राजन् - Oh Rajan! (King).
शतं स॒हस्र॑म् भिषजः - Hundreds and Crore type of medicines.
उर्वी - Wide.
ग॑भी॒रा - With the Quality of serious thinking.
सु॑म॒ति - Intellect.
अस्तु - Fixed.
बाध॑स्व - To stop.
दू॒रे - Established in faraway country.
निर्ऋ॑तिम् - Evil deed(Sin).
परा॒चैः - Averse or to Shun.
कृ॒तम् - To do.
एनःचि॒त् - In sin also.
प्र मु॑मुग्धि - To release.
अस्मत् - We.
Explanation :-This mantra describes the qualities of Varundev. It says that Varundev has hundreds and thousands of medicines through which he helps his devotees in order to protect them.He bestows the best sort of Intelligence on his devotees and protects them from misery. He helps his devotees to get rid of their sins.
Deep meaning: Here actually it is Parmatma in the form of Varundev, Who is being praised by Shruti Bhagwati (Ved). Also Parmatma helps the devotees to keep away from sins and diseases.
#मराठी
ऋग्वेद १.२४.९
श॒तं ते॑ राजन्भि॒षजः॑ स॒हस्र॑मु॒र्वी ग॑भी॒रा सु॑म॒तिष्टे॑ अस्तु ।
बाध॑स्व दू॒रे निर्ऋ॑तिं परा॒चैः कृ॒तं चि॒देनः॒ प्र मु॑मुग्ध्य॒स्मत् ॥
भाषांतर:-
ते॑ - आपले.
राजन् - हे वरूणदेव(राजन).
शतं स॒हस्रं भिषजः - शंभर आणि करोड जातिची औषधे.
उर्वी - विस्तीर्ण.
ग॑भी॒रा - गांभिर्य गुण युक्त.
सु॑म॒ति - बुद्धी.
अस्तु - स्थिर राहणे.
बाध॑स्व - थांबवणे.
दू॒रे - सुदूर देशात स्थापित करणे.
निर्ऋ॑तिम् - आमचे अनिष्ट करणारे अर्थात पाप.
परा॒चैः - पराड़्मुख होणे.
कृ॒तं - केलेले.
एनःचि॒त् - पाप कर्माने.
प्र मु॑मुग्धि - मुक्त करणे.
अस्मत् - आम्ही.
भावार्थ :-ह्या मंत्रात वरूणदेवांचे वैशिठ्य सांगितलेले आहे.म्हटले आहे की वरूणदेवांच्या कडे शंभर आणि सहस्र प्रकारची औषधे आहेत ज्यांचा सहाय्याने ते आपल्या भक्तांना सुरक्षित ठेवतात. ते भक्तांना उत्तम बूद्धी प्रदान करतात आणि दुर्गती पासून रक्षण करतात .आपल्या भक्तांना पापापासून मुक्त करतात.
गूढार्थ: इकडे वरूणदेवांचे रूपात वास्तविकपणे परमात्मा ची विभूती चा वर्णन श्रुति भगवती करत आहेत.
#हिंदी
ऋग्वेद १.२४.९
श॒तं ते॑ राजन्भि॒षजः॑ स॒हस्र॑मु॒र्वी ग॑भी॒रा सु॑म॒तिष्टे॑ अस्तु ।
बाध॑स्व दू॒रे निर्ऋ॑तिं परा॒चैः कृ॒तं चि॒देनः॒ प्र मु॑मुग्ध्य॒स्मत् ॥
अनुवाद :-
ते॑ - आपके।
राजन् - हे(वरूण) राजन्।
शतं स॒हस्र॑मु॒ भिषजः - सैकडो और हजारों औषधियां।
उर्वी - विस्तीर्ण।
ग॑भी॒रा - गांभीर्य गुण युक्त।
सु॑म॒तिः - बुद्धि।
अस्तु - स्थिर होना।
बाध॑स्व - रोकना।
दू॒रे - दूर देश में स्थापित करना।
निर्ऋ॑तिम् - हमारा अनिष्ट करनेवाले अर्थात पाप।
परा॒चैः - पराड़्मुख कर।
कृ॒तम् - किया हुआ।
एनःचि॒त् - पाप से भी।
प्र मु॑मुग्धि -मुक्त करना।
अस्मत् - हमें।
भावार्थ :-इस मंत्र में वरूणदेव की विशेषताओं का वर्णन है। कहा गया है कि वरूणदेव के पास सैकडो एवं सहस्त्रेँ औषधियां हैं जिनकी सहायता से वे अपने भक्तों को सुरक्षित रखते हैं।वे भक्तों को उत्तम बुद्धि प्रदान करते हैं और दुर्गति से रक्षण करते हैं।अपने भक्त के पापों से भी मुक्ति दिलाते हैं।
गूढार्थ:यहां पर वरूणदेव के रूप में परमात्मा की विभूति का वर्णन श्रुति भगवती कर रहीं हैँ।
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